शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-मेरे पौधे
“मेरे पौधे”
न जानें मेरे पौधे ही,
क्यों मुझको अच्छे लगते हैं।
हवा के झोंके से जब वे हिलते,
मन के कितने सच्चे लगते हैं।।
अंकुरित होकर जब धरती में आते,
लगता जैसे दो हाथ फैलाते हैं।
मुस्कान लिए चेहरे पर खड़े अडिग,
मधुर गीत मुझे सुनाते हैं।।
ताप सूर्य की पड़ती जब उन पर,
वे मुरझाए से दिखते हैं।
बूंदे वर्षा की पडे तन पर उनके,
चेहरे उनके खिलने लगते हैं।।
झोंका मंद पवन का जब उनको छूता,
खुशी से वे झूमने लगते हैं।
मंद पवन जब रुक जाती तो,
दुखी दुःखी से वे दिखते हैं।।
समर्पण तो देखो मेरे पौधों का,
वर्षा धूप आंधी सब सहते हैं।
कष्ट मिले कितना भी उनको,
फिर भी अडिग खड़े ही रहते हैं।।
फल लगते जब मेरे पौधों पर,
मन को प्रफुल्लित वे करते हैं।
मेहनत का फल मीठा होता,
यही बात वे मुझसे कहते हैं।।
सीख हमें ये देते पौधे,
कैसे सूर्य तपन को सहते हैं।
खुद के लिए जीना क्या जीना,
दूसरों के लिए भी जीना कहते हैं।।
न जानें””””””””””””””””””””””क्यों,
मेरे””””””””””””””””””””””हैं।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
पौधों पर सुन्दर रचना