"हौसला" तन पर कफ़न बांधे, क्यों वो घर से चल पड़ा है। ना रहे घर में कोई भूखा, सड़क पर...
शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती
"मेरे पौधे" न जानें मेरे पौधे ही, क्यों मुझको अच्छे लगते हैं। हवा के झोंके से जब वे हिलते, मन...
लग रहा बसंत सा लग रहा मृदुल बसंत सा, परिंदों का गुंजन मेरे वन में। दिशाएं सभी महक रही, कलियां...
चुनरी ओढ़े वो आती उड़ती है खुशबू हृदय में, किसकी छवि लिए वो आती। तन बदन विभोर कर देती, पल्लव...
न जानें इंसान क्यों बदल गया न धरती बदली, न आसमान बदला। न चांद बदला, न सूरज बदला। न तारे...