अर्धरात्रि है, काली स्लेट सी छटाएं मदमाती हुई नृत्य करती जैसे कुछ सिसकियां सी आवाज़ कभी तेज... कभी मद्धम... गुर्राते...
युवा कवि वरुण सिंह गौतम की कविता- ठहरी उथली कल्पनाएं
आजकल की बहुतेरे लड़कियाँ भूली हुई है अपनी धारा पे चलना...! घर के पिंजरों से बाहर तलाश रही है अपनी...
हमने बीने पत्तल जंगल के राहों में कोई मारा पत्थर बीच बीच बाजारों में चूल्हे के अंगीठियों में हमने झोंके...
मैं तुम्हें जब देखता हूं अपनी ठहरी उथली कल्पनाओं से एक अंतर्द्वंद्व - सी स्वर झंकृत होकर बिखेर देती स्त्री...