मानवीय संवेदनाओं से घिरी है बहुत तिरस्कृत हुई है नारी। जब भी उसने कुछ कहना चाहा उसे मान मर्यादा का...
की कविता
एक बार तुम फिर से जागो एक बार तुम फिर से जागो, प्रेम की गंगा पुनः बहाओ, दूसरों के लिये...
एक बार तुम फिर से जागो, प्रेम की गंगा पुनः बहाओ, दूसरों के लिये रोड़े न बनो, सत्य और नीति...