अंतरिक्ष में पसीने और मूत्र का अब ऐसे होगा इस्तेमाल, नासा ने खोजी विधि, पढ़कर हो जाओगे हैरान

दुनिया भर के वैज्ञानिक विभिन्न ग्रहों में जीवन की संभावनाओं को लेकर खोज कर रहे हैं, वहीं, अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारियों के लिए महीनों तक लोगों को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। ऐसे वैज्ञानिकों के लिए भोजन और पानी का इंतजाम एक बड़ी चुनौती है। अब नासा अंतरिक्ष में पानी की समस्या को हल करने में भी लगी हैं। इसमें अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मूत्र और पसीने को पेयजल में बदलने में पाई कामयाबी
नासा ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स के लगभग 98 प्रतिशत मूत्र और पसीने को पीने के पानी में बदलने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। स्पेस स्टेशन पर मौजूद हर एक अंतरिक्ष यात्री को पीने, खाना बनाने और साफ-सफाई के लिए एक गैलन प्रतिदिन पानी की जरूरत होती है। अंतरिक्ष यात्रियों ने इस खोज के लिए उन प्रणालियों का इस्तेमाल किया है, जो पर्यावरण संतुलन और लाइफ सपोर्ट सिस्टम का हिस्सा हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चंद्रमा और मंगल अभियान में होगा सहायक
यह भविष्य में चंद्रमा और मंगल पर आगामी मिशनों के लिए काफी मददगार हो सकता है। यह प्रणाली अपशिष्ट जल एकत्र करती है और इसे वॉटर प्रोसेसर असेंबली (डब्ल्यूपीए) में भेजती है, जो पीने योग्य पानी का उत्पादन करती है। एक विशेष घटक चालक दल की सांस में मौजूद नमी और पसीने से केबिन की हवा में जारी नमी को पकड़ने के लिए उन्नत डी-ह्यूमिडिफ़ायर का उपयोग करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे बनाया गया पानी
एक अन्य उपप्रणाली, मूत्र प्रोसेसर असेंबली (यूपीए), वैक्यूम आसवन का उपयोग करके मूत्र से पानी निकालती है। आसवन से पानी और मूत्र का नमकीन पानी बनता है, जिसमें अभी भी कुछ पुनः प्राप्त करने योग्य पानी होता है। इस बचे हुए अपशिष्ट जल को निकालने के लिए विकसित ब्राइन प्रोसेसर असेंबली (बीपीए) का उपयोग करके, अंतरिक्ष यात्रियों ने 98 प्रतिशत जल पुनर्प्राप्ति लक्ष्य हासिल किया, जो पहले 93 और 94 प्रतिशत के बीच था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नासा ने इसे बताया महत्वपूर्ण
अंतरिक्ष स्टेशन की जीवन रक्षक प्रणाली का प्रबंधन करने वाले जॉनसन स्पेस सेंटर की टीम के सदस्य क्रिस्टोफर ब्राउन ने कहा कि जीवन समर्थन प्रणालियों के विकास में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। ब्राउन ने कहा कि मान लीजिए कि आप स्टेशन पर 100 पाउंड पानी इकट्ठा करते हैं। आप उसमें से दो पाउंड खो देते हैं और बाकी 98 प्रतिशत यूं ही घूमता रहता है। इसे चालू रखना एक बहुत बढ़िया उपलब्धि है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बताया क्यों है ये खास
बीपीए यूपीए द्वारा उत्पादित नमकीन पानी लेता है और इसे एक विशेष झिल्ली तकनीक के माध्यम से चलाता है। फिर पानी को वाष्पित करने के लिए नमकीन पानी के ऊपर गर्म, शुष्क हवा फेंकता है। यह प्रक्रिया आर्द्र हवा बनाती है। जो चालक दल की सांस और पसीने की तरह, स्टेशन के जल संग्रह प्रणालियों द्वारा एकत्र की जाती है। टीम ने स्वीकार किया कि पुनर्चक्रित मूत्र पीने का विचार कुछ लोगों को परेशान कर सकता है, लेकिन वे इस बात पर जोर देते हैं कि अंतिम परिणाम जमीनी स्तर पर नगर निगम की जल प्रणालियों के उत्पादन से कहीं बेहतर है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धरती पर पिए जाने वाले पानी से भी अधिक साफ
कई लोगों के मन में पेशाब और पसीने को रिसाइकिल करके पीने की बात पर तरह-तरह के विचार आ रहे होंगे। इसके जवाब में नासा के ECLSS वाटर सबसिस्टम मैनेजर जिल विलियम्सन ने कहा कि इसकी प्रोसेसिंग मूल रूप से उसी तरह है, जैसे धरती पर कई जगह पानी की प्रोसेसिंग करने वाला सिस्टम काम करता है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष यात्री पेशाब नहीं, बल्कि वो धरती पर पिए जाने वाले पानी से भी अधिक साफ पानी पी रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पानी की उपलब्धता से बढ़ेगी ये सुविधा
विलियम्सन के अनुसार, ECLSS जैसे सिस्टम महत्वपूर्ण हैं क्योंकि नासा अंतरिक्ष से जुड़े कई मिशन संचालित करती है। उनके मुताबिक, “जितना कम पानी और ऑक्सीजन हमें अंतरिक्ष यात्रियों के साथ भेजना होगा उतने ही अधिक वैज्ञानिक उपकरण लॉन्च व्हीकल में जोड़े जा सकते हैं। उनके मुताबिक, विश्वसनीय रीजनरेटिव या रिसाइकिल सिस्टम का मतलब है कि अंतरिक्ष यात्रियों को इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है और वे अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।