आइटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, किसी पर नहीं चले मुकदमा, नोटबंदी पर केंद्र और आरबीआइ से मांगा जवाब
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आईटी एक्ट की धारा 66-ए के अंतर्गत यह प्रावधान था कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, उत्तेजक या भावनाएं भड़काने वाली सामग्री डालने पर व्यक्ति को गिरफ्तारी किया जा सकता है। वहीं, शीर्ष अदालत ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19.1.ए के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताकर निरस्त कर दिया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यू यू ललित की बेंच ने कहा कि जानकारी बताती है कि 66A को रद्द किए जाने के बावजूद नागरिक अभी भी मुकदमों का सामना कर रहे हैं। ऐसी कार्यवाही सीधे श्रेया सिंघल फैसले का उल्लंघन है। यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि 66A का संविधान का उल्लंघन पाया गया है। ऐसे में किसी भी नागरिक पर धारा 66A के उल्लंघन के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीजेआई ने कहा कि-उन सभी मामलों में जहां नागरिक 66A के उल्लंघन के लिए अभियोजन का सामना कर रहे हैं। सभी अपराधों से संदर्भ और 66A पर निर्भरता हटा दी जाएगी। हम सभी पुलिस महानिदेशकों, गृह सचिव और केंद्र शासित प्रदेशों के सक्षम अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि वे पुलिस बल को 66A के उल्लंघन के संबंध में कोई शिकायत दर्ज न करने का निर्देश दें। जिस भी पब्लिकेशन में 66A को कोट किया गया है, वहां लिखा जाए कि इस धारा को अदालत ने संवैधानिक करार दिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नोटबंदी के मामले में सुप्रीम कोर्ट का दखल, अगली सुनवाई नौ नवंबर को
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा फैसला ‘जुडिशल रिव्यू’ के दायरे में है। 2016 में मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। बुधवार को अदालत ने कहा कि वह नोटबंदी मामले की पड़ताल करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) से इस बारे में डीटेल्ड एफिडेविट मांगा है। पांच जजों की संविधान बेंच नोटबंदी के फैसले के पीछे के लॉजिक को समझेगी। जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय बेंच 9 नवंबर को अगली सुनवाई करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अदालत ने बुधवार को कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर लक्ष्मण रेखा से वाकिफ है, लेकिन 2016 के नोटबंदी के फैसले की पड़ताल जरूर करेगा। कोर्ट ने कहा कि ताकि यह पता चल सके कि मामला केवल अकादमिक कवायद तो नहीं था। मसुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि इस पहलू का जवाब देने के लिए कि नोटबंदी एकेडमिक है या नहीं या जुडिशल रिव्यू के दायरे से बाहर है। हमें इसकी सुनवाई करनी होगी। सरकार की नीति और उसकी बुद्धिमता, इस मामले का एक पहलू है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पी चिदंबरम की दलीलों से सुप्रीम कोर्ट को किया सुनवाई के लिए विवश
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपनी दलीलों से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को नोटबंदी (Demonetisation) के जिन्न को बोतल से बाहर निकलने पर विवश कर दिया। चिदंबरम की दलीलों के बाद नोटबंदी के खिलाफ कोल्ड स्टोरेज में पड़ी 58 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। एससी ने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक कानून तय किया जा सकता है। संविधान पीठ का कर्तव्य है कि वो मुद्दे में उठे सवालों का जवाब दे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दरअसल, बेंच शुरू में एसजी तुषार मेहता की इस टिप्पणी को स्वीकार कर याचिकाओं को निपटारा करना चाहती थी कि मामला निष्प्रभावी हो गया है और केवल अकादमिक हित रह गया था। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री और एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि 1978 की नोटबंदी एक अलग कानून था। अध्यादेश के बाद एक कानून लाया गया यह अकादमिक नहीं है, यह एक लाइव इश्यू है। हम इसे साबित करेंगे। यह मुद्दा भविष्य में उत्पन्न हो सकता है। इसके बाद पीठ का प्रथम दृष्टया विचार था कि इस मुद्दे को और जांच की जरूरत है। इसके बाद केंद्र और RBI से विस्तृत हलफनामा मांगा गया।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।