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September 25, 2024

थाने में मौजूद उप निरीक्षक ने नहीं ली एनटीपीसी के खिलाफ शिकायत, डाक से भेजा शिकायती पत्र

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चमोली आपदा में हुए नुकसान के लिए एनटीपीसी के खिलाफ जोशीमठ थाने में पहुंचे भाकपा (माले) की राज्य कमेटी सदस्य अतुल सती की लिखित शिकायत को थाने में मौजूद उप निरीक्षक ने लेने में असमर्थता जाहिर की।

चमोली आपदा में हुए नुकसान के लिए एनटीपीसी के खिलाफ जोशीमठ थाने में पहुंचे भाकपा (माले) की राज्य कमेटी सदस्य अतुल सती की लिखित शिकायत को थाने में मौजूद उप निरीक्षक ने लेने में असमर्थता जाहिर की। उन्होंने बताया कि थाना प्रभारी ही शिकायत को लेंगे। इस पर उन्होंने शिकायती पत्र को रजिस्टर्ड डाक से जोशीमठ थाने में भेजा। भाकपा माले की ओर से उक्त जानकारी दी गई।
शिकायती पत्र में अतुल सती ने रैणी गांव में आपदा के लिए एनटीपीसी को जिम्मेदार मानते हुए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम न करने और श्रमितों की मौत के संबंध में मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। पत्र में कहा गाय है कि 07 फरवरी 2021 को जोशीमठ में ऋषिगंगा में भारी जल प्रलय आई। इससे चलते रैणी में ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना बह गयी और मजदूर व स्थानीय निवासी इसका शिकार बने।
उन्होंने कहा कि इस भयानक जल प्रवाह को रैणी से तपोवन में एनटीपीसी की ओर से बनाई जा रही तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना के बैराज तक पहुंचने में 15 से 20 मिनट लगे। आपातकालीन स्थितियों में यह समयावधि इतनी है कि खतरे की चेतावनी दी जा सकती थी और लोगों की प्राण रक्षा हो सकती थी।
उन्होंने कहा कि यह बेहद अफसोसजनक बात है कि तपोवन में परियोजना निर्माता कंपनी एनटीपीसी की ओर से ऐसे खतरों से निपटने के कोई इंतजाम नहीं किए गए थे। यहां तक कि खतरे की सूचना देने के लिए कोई साइरन या हूटर तक नहीं लगाया गया था। बैराज साइट पर सीढ़ियाँ या रस्से नहीं थे। जिनका प्रयोग करके लोग प्राण बचा सकते। सुरंग के अंदर भी आपातकालीन स्थितियों के लिए सुरक्षा इंतजाम और ऑक्सीजन सप्लाई का कोई व्यवस्था नहीं थी। यदि इस तरह के बंदोबस्त किए गए होते तो मजदूरों व अन्य कार्मिकों के प्राण बचाए जा सकते थे।


साथ ही भारत सरकार व उत्तराखंड सरकार की बड़ी धनराशि व संसाधन खोज अभियान पर खर्च नहीं होते। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड 2013 की आपदा की भीषण त्रासदी झेल चुका है। इसमें जोशीमठ क्षेत्र में विष्णुप्रयाग परियोजना का बैराज पूरी तरह नष्ट हो गया था। तपोवन में ही एनटीपीसी का काफर डैम दो बार अतीत में बह चुका है।
इसके बावजूद एनटीपीसी की ओर से किसी तरह की सुरक्षा इंतजाम न करना और किसी तरह के पूर्व चेतावनी तंत्र (early warning system) की व्यवस्था न करना, गंभीर आपराधिक लापरवाही है। इसकी कीमत श्रमिकों और अन्य कार्मिकों को अपने प्राण दे कर चुकानी पड़ी है। पूर्व में गठित घटनाओं के अनुभव से यह जानते हुए भी कि सुरक्षा इंतजाम न करना परियोजना निर्माण में लगे मजदूरों और अन्य लोगों के लिए जानलेवा हो सकता है। उसके बावजूद कोई सुरक्षा इंतजाम न करना (जिसके कारण कई लोगों की जान गयी), गंभीर अपराध है।
पत्र में कहा गया है कि वर्ष 2013 की आपदा के बाद उच्चतम न्यायालय से गठित विशेषज्ञ समिति ने भी पूर्व चेतावनी तंत्र समेत सुरक्षा के बंदोबस्त करने का निर्देश दिया था, परंतु उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का भी खुला उल्लंघन किया गया।
उक्त तमाम बातों को देखते हुए तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की निर्माता कंपनी एनटीपीसी के विरुद्ध मजदूरों की जान लेने के अपराध के लिए सुसंगत धाराओं (304 आई.पी.सी) में मुकदमा दर्ज करके सजा दिलवाई जाये।
लापरवाही आई थी सामने
उत्तराखंड में चमोली जिले में आपदा के बाद राहत और बचाव कार्यों में बहुत बड़ी लापरवाही सामने आई थी। चार दिन तक एनटीपीसी की जिस टनल में लापता 35 मजदूरों की खोज का काम चल रहा था, इसे लेकर बड़ा खुलासा होने के बाद हड़कंप मच गया। बुधवार 10 फरवरी की रात पता चला कि जिस टनल में श्रमिक काम ही नहीं कर रहे थे, वहां चार दिन तक टनल साफ करने का काम चलता रहा। वहीं, मजूदूर इस टनल से करीब 12 मीटर नीचे दूसरी निर्माणाधीन टनल एसएफटी में काम कर रहे थे। ये टनल एसएफटी (सिल्ट फ्लशिंग टनल) गाद निकासी के लिए बनाई जा रही थी। करीब 560 मीटर लंबी एसएफटी टनल निर्माण के लिए अब तक 120 मीटर तक खुदाई हो चुकी थी। अब इसी टनल में लापता को खोजने का काम चल रहा है।
सात फरवरी को आई थी आपदा
गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में अचानक ऋषिगंगा और धौलगंगा नदी में पानी का जलजला आने से रैणी गांव में ऋषिगंगा नदी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का डैम धवस्त हो गया था। इसने भारी तबाही मचाई और पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित धौलीगंगा नदी में एनटीपीसी के बांध को भी चपेट में ले लिया था।
इससे भारी तबाही मची। घटना रविवार सात फरवरी की सुबह करीब दस बजे की थी। इससे अलकनंदा नदी में भी पानी बढ़ गया था। तब प्रशासन ने नदी तटों को खाली कराने के बाद ही श्रीनगर बैराज से पानी कंट्रोल कर लिया। वहीं, टिहरी डाम से भी आगे पानी को बंद कर दिया था। इससे बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। आपदा से कई छोटे पुल ध्वस्त हो गए। 13 गांवों का आपस में संपर्क कट गया। आपदा में अब तक कुल 204 लोगों में 62 शव बरामद हुए हैं। 34 की शिनाख्त हो चुकी है। 28 की शिनाख्त नहीं हुई। 142 लोग लापता हैं। वहीं, 184 पशु हानि भी हुई।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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