भारत के छात्रों ने कर दिया कारनामा, मंगल ग्रह अभियान के लिए बनाया रोवर, इसके साथ नासा मंगल पर उतारेगा मानव
आने वाले समय में राजस्थान के झुंझुनूं में बनी मशीनें भी मंगल ग्रह में पहुंचेंगी। पिलानी के बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) के स्टूडेंट्स ने एक ऐसा रोवर तैयार किया है, जो मानव को लेकर मंगल पर उतर सकेगा। खास बात यह है कि एक कॉम्पिटिशन में उनकी इस टेक्नोलॉजी को दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एजेंसी (नासा) ने एशिया में सबसे बेहतर माना है। तीन पहिये का यह रोवर पैडल से चलेगा। इसे दो यात्री एक दूसरे की विपरीत दिशा में बैठकर चला सकेंगे। कार्बन फाइबर से बना यह रोवर मजबूत होने के साथ वजन में काफी हल्का है। इसे मंगल तक ले जाना काफी आसान है। इसके पहियों व पैडल को चेन की जगह मजबूत बेल्ट से जोड़ा गया है, जो पांच सौ किलो तक वजन सहन करने की क्षमता रखता है। मालूम हो कि मंगल में जीवन की संभावनाओं की खोज में नासा के रोवर पहले से मौजूद हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस रोवर की खासियत
स्टूडेंट्स ने मंगल ग्रह पर उतारने के लिए तीन पहिए का एक विशेष रोवर बनाया है। कार्बन फाइबर से बना रोवर वजन में काफी हल्का है। साथ ही 500 किलो तक भार सह सकता है। रोवर पैडल से चलेगा। खास बात ये है कि इसे दो यात्री एक-दूसरे की विपरीत दिशा में बैठकर भी चला सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रोवर बनाने वाले स्टूडेंट्स ने बताया- हम लगातार 3 साल से इस कॉम्पिटिशन में भाग ले रहे थे। नासा की ओर से टास्क दिया गया था कि ऐसा रोवर बनाना है, जो मंगल की सरफेस पर ट्रैवल कर सके और मानव चलित हो। इसके लिए छात्रों ने 6-7 महीने लगातार रोवर पर काम किया। इसका डिजाइन पिलानी में ही तैयार किया। इसकी मैन्यूफैक्चरिंग भी यहीं की और कैंपस में ही टेस्ट किया। इसके पाट्र्स के लिए छात्रों की टीम ने कई बार दिल्ली के चक्कर काटे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मिली थी 50 हजार रुपए की स्पॉन्सरशिप
स्टूडेंट्स ने बताया कि हमारा रोवर 65 किलो का है और 500 किलो तक वजन झेल सकता है। सबसे बड़ी 2 बातें हैं, जिसकी वजह से हमें अवॉर्ड मिला। पहली- हमने इसके व्हील्स थ्रीडी प्रिंटेड रखे। यह प्रयोग किसी भी दूसरी टीम ने नहीं किया था। दूसरी- हमने इसे इलेक्ट्रिकल पाॅवर्ड रखा, मैकेनिकल नहीं। संस्था के डायरेक्टर प्रो. सुधीर कुमार बराई ने बताया कि स्टूडेंट्स ने इसमें एल्युमीनियम और कार्बन फाइबर का यूज किया। इसलिए यह वजन में हल्का है। इसके लिए उन्हें 50 हजार रुपए की स्पॉन्सरशिप मिली थी।
नासा ने कहा था- हर तरह की सतह पर चलने वाला रोवर बनाएं
प्रोजेक्ट में स्टूडेंट्स के गाइड रहे प्रो. मनोज सोनी ने कहा कि हमारी टीम अमेरिका गई और नासा में सफलता हासिल की। नासा की गाइडलाइन थी कि रोवर ऐसा हो जो किसी सरफेस से सैंपल कलेक्ट कर सके, मैनुअल पावर से चले। बच्चे इसी तरह का रोवर तैयार करने में सफल रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अप्रैल में हुआ था कॉम्पिटिशन
बिट्स के 7 छात्रों ने इस खास रोवर को अमेरिका में नासा के एक कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेट करने के लिए तैयार किया। यह कॉम्पिटिशन अप्रैल में हुआ था। अवॉर्ड सेरेमनी में बिट्स के छात्रों के इस प्रोजेक्ट को एशिया पैसेफिक में पहला अवॉर्ड हासिल हुआ, जबकि ओवरऑल परफोर्मेंस के हिसाब से इसे दुनिया में 12वां स्थान मिला। रोवर को तैयार करने वाले 7 छात्रों की टीम का नाम इंस्पायर्ड कार्टर्स ग्रेविटी रखा गया। अमेरिका के नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) में प्रजेंटेशन के लिए ये छात्र 7 महीने से लगातार इस रोवर पर काम कर रहे थे। यह कार्यक्रम अमेरिका के अलबामा के हंट्सविले में नासा मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर में हुआ था। इसमें 8 देशों की 61 टीमों ने भाग लिया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन विद्यार्थियों ने बनाया रोवर
यह रोवर कनवा कश्यप (बेंगलुरु), साइना गोधा (इंदौर), अर्थव श्रीवास्तव (नोएडा), अर्नब सिंह (नई दिल्ली), रोहित (विशाखापट्टनम), समकित जैन (मुरादाबाद), अर्थवा रामदास (बेंगलुरु) ने बनाया है। खास बात यह है कि सभी के सभी टीम सदस्य 20 साल के ही है। वहीं उन्होंने इसे बनाने के लिए कई बार दिल्ली के चक्कर लगाए और हिम्मत नहीं हारी।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।