शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कहानी-चमत्कार-कोई देख नहीं पाया पर महसूस सबने किया
चमत्कार
बहुत ही सुन्दर और दिलचस्प समय था। क्योंकि अगले दिन बसंत पंचमी का दिन था। यह दिन पर्व का दिन होता है। सभी लोग पर्व में जानें की तैयारी कर रहे थे। कोई कोटेश्वर महादेव मंदिर में, तो कोई हरिद्वार में गंगा स्नान जानें की तैयारी कर रहे थे। उन्होने मुझे भी हरिद्वार गंगा स्नान जानें के लिए कहा। मैं दो दिन पहले ही हरिद्वार से गंगा स्नान करके आई थी। इसलिए मैंने उन्हें मना कर दिया था। परन्तु जब उन्होंने ने बार बार कहा तो मैं मन से जाने को तैयार हों गई, लेकिन रात अधिक होने के कारण उनसे नहीं कह पाई और सुबह का इंतजार कर सो गई।
अगले दिन मैं सुबह जल्दी उठकर स्नान किया पूजा की और तैयार हो गई कि अब मुझे फोन कर बताएंगे कि किस समय चलना है। परन्तु उन्होने मुझसे कुछ नही कहा, बल्की सीधे चली गई। मुझे मुड़कर देखा भी नहीं। मुझे उस वक्त बहुत खराब लगा, परन्तु मन में धैर्य बंधाया कि मैं तों कल ही हरिद्वार से नहा कर आई हूं। मैं इन्हीं के कहने पर जा रही थी और यह सोचकर अपने काम में लग गई।
उसी दिन पड़ोस की एक महिला आई और बोली-तू नहीं गयी हरिद्वार?
मैंने कहा- नहीं।
तब उसने कहा-ठीक हुआ! आज हमारे घर जन्मदिन है आज जाना। उसके बाद कुछ और महिलाओं को ठीक दो बजे बुलाकर चली गई।
हम ठीक दो बजे उनके घर पर गये। उन्हें जन्मदिन की बधाई दी और थोड़ी देर बाद हलवा पकौड़ी खाने लगे। जब घर आने लगे उसी समय मेरी नजर ढोलक पर पड़ीं जो उन्होंने धूप में रखी थी।
मैंने उनसे कहा-अरे! तुमने ढोलक धूप में सुखाने रखी है।
तब वो बोली -चलो कीर्तन करते हैं।
मैंने उनसे कहा-अरे नहीं! अब हमने हलवा पकौड़ी खा ली है अब नहीं।
पर उन्होंने जोर कर दिया- नहीं कीर्तन-भजन करो।
तब हम सब कीर्तन करने बैठ गये। मैंने देखा कि यहां पर मां भगवती की फोटो नहीं लगीं हैं। मैंने मां की फोटो ढूंढी पर मुझे नहीं दिखीं। जब नहीं दिखी तब हम मां का स्मरण करते हुए मां का भजन करने लगे। चार भजन करने के बाद मां पुण्यासणि साक्षात मूर्ति के रूप में मेरे सामने शेर सवार में मेरे सामने खड़ी हो गई।
मैं जोर से चिल्ला उठी-मां पुणयासणि आ गई ।
सबने कहा कि-कहां है।
मैंने कहा- वो देखो।
कोई देख नहीं पाया पर महसूस सबने किया। मैं कांप गयी। पर मैं धन्य हो गयी मां के दर्शन पाकर। उन्होंने मेरे पर पिठाई लगाई। दूबारा सबके लिए चाय पकौड़ी लाई पर मेरे शरीर में कंपकंपी बनी रही। मैं चाय का प्यांला नहीं पकड़ पाई, लेकिन मेरे बगल में दूसरी महिला बैठी थी। जो नाते में बुआ लगती हैं। उसने मेरे हाथ से चाय का कप लेने पर मेरी कंप कंपी दूर हुई। जय मां पुण्यासणि। मां सबकी मनोकामना पूरी करे और सबकी रक्षा करें। जिस प्रकार तूने मुझे दर्शन दिए उसी प्रकार जो सच्चे मन से तुझे पुकारे उसको भी देना मां।
लेखिका का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।