शिवानी एमआर जोशी की कविता-इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का हो ना

इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का हो ना,
हजारों गमों के बिच भी होठों पर मुस्कान लाना,
घर के सुख चैन को छोड़कर बाहर की ठोकरें खाना,
इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का हो ना।
बचपन में पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने का दबाव होना,
अच्छी नौकरी पाने के लिए उस उम्र में जीये जाने वाले मीठे मीठे पलों को भूल जाना,
एक उम्र के बाद पूरी जिम्मेदारियों के बोझ को अपने कंधों पर लेना,
इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का हो ना।
चोट कितनी भी गहरी हो पर उसे ठीक है यही बताना,
सारे शौख छोड़कर सिर्फ जरूरतों पर ध्यान देना,
पॉकेट में चाहे ₹ एक ना हो फिर भी सब हो जाएगा कहेना,
इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का होना।
परिवार की ख्वाहिशों के आगे अपनी जरूरतों को भूल जाना,
8 से12 घंटे अपनों के लिए अपनों से दूर जाकर नौकरी पर रहना,
सभी लोग त्योहारों को अच्छे से मना पाए इसलिए त्यौहार के दिन ज्यादा काम करना,
इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का होना।
छोटी-छोटी बातों को लेकर कई बार डर जाते हैं सुना होगा,
बड़ी -बडी मुसीबत तो मैं भी उनका माथे पर एक शिकन तक ना लाना,
अपनी खुशी के लिए एक पर भी नहीं पर पूरी जिंदगी अपनों के लिए जीना,
इतना आसान नहीं होता जनाब एक लड़का हो ना।
कवयित्री का परिचय
शिवानी एमआर जोशी अहमदाबाद, गुजरात से हैं। वह पेशे से एक शिक्षिका है और विज्ञान की छात्रा भी हैं। लॉकडाउन के दौरान लेखन में उनकी रुचि बढ़ी और धीरे-धीरे उन्होंने साहित्यिक प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू कर दिया। वर्तमान में वह सनशाइन प्रकाशन संस्थापक हैं। वह स्मार्टवर्क के साथ कड़ी मेहनत में विश्वास करती हैं। उसने कई लेख लिखे। भविष्य में डॉक्टर बनना उसका सपना है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।