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April 28, 2025

वह न सुन, न बोल और न देख सकती थी, फिर भी छू गईं ऊंचाइयां, इस महान विभूति को किया गया याद, जानिए जीवन संघर्ष की कहानी

बोलने, सुनने, देखने की क्षमता न होने के बावजूद उन्होंने पढ़ाई की और दिव्यांगों के लिए प्रेरणा बनी। इस महान विभूति के जीवन से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए।

बोलने, सुनने, देखने की क्षमता न होने के बावजूद उन्होंने पढ़ाई की और दिव्यांगों के लिए प्रेरणा बनी। इस महान विभूति के जीवन से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। क्योंकि यदि कोई किसी काम के लिए जीवन में ठान ले तो वह मेहनत के बल पर ही संभव हो सकता है। ऐसी महान विभूति हेलन केलर को उनके जन्मदिन पर याद किया गया। देहरादून में राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून के अष्टावक्र सभागार में हेलन केलर को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
इस मौके पर उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया। उनकी मेहनत और समाज के लिए किए गए सामाजिक सेवा व संघर्ष से प्रेरणा लेने पर जोर दिया गया। संस्थान के निदेशक डॉ. हिमांग्शु दास ने हेलन केलर के जीवन वृत्त को सभी दिव्यांग जनों के लिए प्रेरक बताया। कहा कि हेलन केलर के जीवन का विस्तृत अध्ययन से एवं उनके शोध से दिव्यांग जनों के लिये अभी बहुत काम करने की आवश्यकता है।
दिव्यांगजनो के कल्याण के लिए समर्पित सक्षम संस्था के उपाध्यक्ष अतुल गुप्ता, अनिल मिश्रा ने हेलन केलर के समाज को दिए गए योगदान से अवगत कराया गया। वहीं सक्षम के उपाध्यक्ष प्रोफेसर राजपाल सिंह (दृष्टि दिव्यांगजन) ने मूक-बधिर एवं दृष्टि दिव्यांग हेलन केलर की संघर्षमयी जीवन यात्रा से विस्तृत रुप से अवगत कराया। संस्थान के अधिकारी राजेन्द्र सिंह नेगी तथा राम लायक ने हेलन केलर की ओर से दिव्यांगो के प्रति योगदान की जानकारी दी।
इस अवसर पर सूरज प्रकाश फरासी, शीशपाल सिंह चौहान, सुभाष नौडियाल,अनिल वर्मा, मानवेंद्र सती के साथ राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देहरादून के अधिकारियों में मनीष कुमार वर्मा, सुनील सिरपुर कर, डॉ पंकज कुमार, अमित शर्मा, योगेश अग्रवाल, ईशब नौबी आदि अनेक अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सक्षम के महानगर अध्यक्ष वीरेंद्र मुंडेरी ने किया।

जीवन परिचय
हेलेन एडम्स केलर 27 जून 1880 को अमेरिका के टस्कंबिया, अलबामा में पैदा हुईं। जन्म के समय हेलन केलर एकदम स्वस्थ्य थी। उन्नीस महीनों के बाद वह बीमार हो गयी और उस बिमारी में उनकी नजर, ज़ुबान और सुनने की शक्ती चली गयी। हेलन केलर के माता-पिता के सामने एक चुनौती आ खड़ी हुई कि ऐसा कौन शिक्षक होगा जो हेलन केलर को अच्छी शिक्षा दे पाए और हेलन केलर समझ पाए। ऐसा इसलिए क्योंकि हेलन केलर सामान्य बच्चों से भिन्न थी।
प्रारंभिक शिक्षा
इसके बाद उन्हें आखिरकार एक शिक्षक मिल गया जिनका नाम था “एनि सुलिव्हान”। इन्होंने हेलन केलर को हर तरीके से शिक्षा दी। इसमें उन्होंने मेन्युअल अल्फाबेट और ब्रेल लिपी आदि पद्धतियों से शिक्षा देने की कोशिश की। जैसे-तैसे संघर्षो का दौर बीतता गया और एक तरह से हेलन केलर ने राइट हमसन स्कूल फॉर डीप से प्रारंभिक शिक्षा पूरी की।
लिखी किताब, समाज को किया जागरूक
प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने के बाद अब हेलन केलर अपने आपको अकेला समझने लगी। क्योंकि उनकी जिज्ञासा थी कि वो भी सभी की तरह पढ़ाई करें। इसके लिए आगे 1902 में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए हेलन केलर ने रेडक्लिफ कॉलेज में दाखिला लिया। वहां हेलन केलर सामान्य छात्रों के साथ पढ़ने लगी। यहां पढ़ते-पढ़ते हेलन केलर को लिखने का शौक जगा और वो लिखने लगी। हेलन केलर ने उस दौर में एक ऐसी पुस्तक लिखी जिन्होंने उनको बहुत बड़ी उपलब्धि दिलाई। उस पुस्तक का नाम है-द स्टोरी आफ़ माय लाइफ। अपने जीवन में संघर्षो के ऐसे दौर को पार करके हेलन केलर ने समझ लिया था कि जीवन में यदि संघर्ष किया जाए, तो कोई काम ऐसा नहीं है जिसे हम ना कर सकते हो। यहीं सोच लेकर हेलन केलर ने समाज के हित के लिए कदम बढ़ाया और वो अपने जैसे लोगों को जागरूक करने निकल पड़ी।
पहली बधिर दृष्टिहीन स्नातक
हेलर केलर ने 1 जून 1968 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। वह एक अमेरिकी लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता और आचार्य थीं। वह कला स्नातक की उपाधि अर्जित करने वाली पहली बधिर और दृष्टिहीन थी। ऐनी सुलेवन के प्रशिक्षण में छह वर्ष की अवस्था से शुरू हुए 49 वर्षों के साथ में हेलेन सक्रियता और सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँची।
बन चुकी हैं फिल्में
ऐनी और हेलेन की चमत्कार लगने वाले कहानी ने अनेक फिल्मकारों को आकर्षित किया। हिंदी में 2005 में संजय लीला भंसाली ने इसी कथानक को आधार बनाकर थोड़ा परिवर्तन करते हुए ब्लैक फिल्म बनाई। इसमें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और रानी मुखर्जी ने अभिनय किया। बेहतरीन लेखिका केलर अपनी रचनाओं में युद्ध विरोधी के रूप में नजर आतीं हैं। समाजवादी दल के एक सदस्य के रूप में उन्होंने अमेरिकी और दुनिया भर के श्रमिकों और महिलाओं के मताधिकार, श्रम अधिकारों, समाजवाद और कट्टरपंथी शक्तियों के खिलाफ अभियान चलाया।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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