वरिष्ठ नागरिक ने सीएम को लिखा पत्र- स्मार्ट सिटी के प्रचार पर हो रहा लाखों खर्च, पेयजल आपूर्ति भी सुधार लो
जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पेयजल आपूर्ति लड़खड़ाने लगी है। इसके कारण एक नहीं हैं। कहीं स्मार्ट सिटी के कार्यों के चलते बार बार पेयजल लाइनों का टूटना है, तो कहीं पुरानी पेयजल लाइनों से ज्यादा कनेक्शन का जोड़ा जाना है। वहीं, कुछ स्थानों पर जल विद्युत निगम के स्रोत पर निर्भरता है। पानी का जहां संकट नहीं है, वहां लोग भी सड़कों पर छिड़काव कर पानी का दुरुपयोग कर रहे हैं। बिगड़ती पेयजल व्यवस्था को लेकर वरिष्ठ नागरिक एवं समाजसेवी जगमोहन मेंदीरत्ता ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पेयजल आपूर्ति में सुधार की मांग की। साथ ही कहा कि कि जितना खर्च स्मार्ट सिटी के प्रचार के होर्डिंगों पर हो रहा है, उसकी मामूली राशि पेयजल व्यवस्था के सुधार में लगा देते, तो शायत लोगों को पेयजल संकट से नहीं जूझना पड़ता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हैं जलापूर्ति के स्रोत
दून में वर्तमान में करीब पौने तीन सौ ट्यूबवेल के साथ ही तीन नदी व झरने के स्रोत हैं। ज्यादातर पेयजल आपूर्ति ट्यूबवेल से ही की जाती है। गर्मी बढ़ते ही भूजल स्तर गिर जाता है। ट्यूबवेल की क्षमता भी घटने लगती है। अन्य स्रोतों से भी पानी का प्रवाह घटना शुरू हो जाता है। इस कारण पेयजल संकट गहराने लगता है। आमतौर पर दून में पेयजल की मांग 242.17 एमएलडी है, जबकि उपलब्धता 228 एमएलडी है। लीकेज और वितरण व्यवस्था की खामियों के कारण वर्षों से यह समस्या बनी हुई है। गर्मी में तो मानकों के मुताबिक, पेयजल की आपूर्ति बहुत कम हो जाती है। पानी की आपूर्ति जल संस्थान के माध्यम से की जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वरिष्ठ नागरिक की सीएम से व्यवस्था सुधारने की मांग
बैंक इंप्लाइज यूनियन में लंबे समय तक पदाधिकारी रहे एवं वरिष्ठ नागरिक व समाजसेवी जगमोहन मेंदीरत्ता ने सीएम धामी को पत्र लिखकर अवगत कराया कि देहरादून के दिल घंटाघर के आसपास के इलाकों में ही पेयजल संकट गहराने लगा है। उन्होंने कहा कि नेशविला रोड से लेकर ओंकार रोड तक कई गरियों में सुबह और शाम को मात्र एक घंटे की पेयजल आपूर्ति हो रही है। साथ ही आपूर्ति का समय भी तय नहीं है। ऐसे में कई बार लोगों को पता तक नहीं चलता कि पानी कब आया है। जब पानी आता है तो प्रेशन ना के बराबर होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि अभी गर्मिया शूरू हुई हैं। आगे का अनुमान लगाया जा सकता है कि क्या हाल होने वाला है। उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ो रूपये खर्च कर दीवारों पर पेंटिंग आदि पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के प्रचार में भी लाखों के बोर्ड लगाए जा रहे हैं। दुंकानो पर पेंट व बोर्ड बनाने में भी लाखों रुपए खर्च किये जा रहे है। यदि पेयजल व्यवस्था सुधारने पर ही कुछ खर्च कर दिया जाता तो जनता को राहत मिलती। उन्होंने स्मार्ट सिटी के कार्यों की भी निष्पक्ष जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि एक और सड़क को सुंदर बनाने में करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे हैं, तो इंसान की सबसे जरूरी चीज पानी कि सप्लाई में कमी क्यों है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बार बार टूट रही है पेयजल लाइन
शहर के कई इलाकों में स्मार्ट सिटी के कार्यों के चलते, नालियों के निर्माण के चलते बार बार पेयजल लाइन टूट रही है। जाखन कैनाल रोड पर कई बार पेयजल लाइन टूटने से चलते निचले इलाके साकेत कालोनी, आर्यनगर आदि इलाकों की पेयजल आपूर्ति भी बार बार बाधित हो रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ढलान वाले इलाकों में बह जाता है पानी
राजधानी में मौहल्लों की स्थिति भी एक समान नहीं हैं। कुछ इलाके ऊंचाई पर हैं, तो कुछ इलाके काफी निचाई में हैं। ऐसे में जब भी जलापूर्ति होती है तो सारा पानी निचले इलाकों की तरफ बहने लगता है। जब तक लाइनें पूरी तरह से भरती हैं, तब तब सप्लाई बंद हो जाती है। ऐसे में ऊपरी इलाकों में पेयजल संकट गहराने लगता है। यहां एक उदाहरण इस बात से समझा जा सकता है कि नालापानी पुलिस चौकी स्थित नलकूप से पानी की जब सप्लाई होती है तो आर्यनगर का कुछ इलाका ऊंचाई में है। वहीं, डीएल रोड, अंबेडकर कालोनी निचले इलाके में हैं। अब जब भी पानी की सप्लाई होती है तो ऊपरी इलाके में लो प्रेशर की समस्या हो रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जल विद्युत निगम पर निर्भरता
देहरादून शहर के उत्तरी भाग के एक बड़े हिस्से में ग्लोगी पावर हाउस से जलापूर्ति की जाती है। ये ग्रेविटी वाला स्रोत है। यानी कि यहां से पेयजल लेने के लिए बिजली के पंप की जरूरत नहीं पड़ती है। पानी अपने आप ही ढलान वाले क्षेत्र में पाइप लाइनों में बहता है और एक बड़े क्षेत्र में जलापूर्ति होती है। ग्लोगी पावर हाउस में जल विद्युत निगम की चार टरबाइनें हैं। इसे चलाने के लिए जो पानी नदी के स्रोत से लिया जाता है, वही आगे चलकर जल संस्थान की पाइप लाइनों में डाल दिया जाता है। इन टरबाइन में मात्र दो ही नियमित चलती हैं। इस बार गर्मी में निगम बार बार तकनीकी खराबी के चलते टरबाइन बंद कर रहा है। ऐसे में ग्लोगी स्रोत से देहरादून में पुरकुल गांव, भगवंतपुर, गुनियाल गांव, चंद्रोटी, जौहड़ी गांव, मालसी, सिनौला, कुठालवाली, अनारवाला, गुच्चूपानी, नया गांव, विजयपुर हाथी बड़कला, किशनपुर, जाखन, कैनाल रोड, बारीघाट, साकेत कालोनी, आर्यनगर, सौंदावाला, चिड़ौवाली, कंडोली सहित कई इलाकों में जलापूर्ति का संकट बार बार पैदा हो रहा है। यहां गौर करने वाली बात ये है कि आज तक जल विद्युत से जल संस्थान की निर्भरता दूर करने का कोई समाधान नहीं निकाला गया है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।