उत्तराखंड में वरिष्ठ अधिवक्ता जेडी जैन का निधन, जानिए उनके बारे में रोचक तथ्य
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में वरिष्ठ अधिवक्ता जेडी जैन का निधन हो गया। वह करीब 74 साल के थे। वह कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। किसी समय में देहरादून वकीलों में जेडी जैन का ऐसा नाम था कि अधिकांश अपराध के आरोपी भी उनके पास पहुंचते थे कि वह उन्हें बचा लेंगे। इसके विपरीत कई मामलों में उन्होंने गरीब परिवारों के केस फ्री लड़े और उन्हें न्याय दिलाया। उनकी फीस बहुत अधिक थी, लेकिन ऐसे कई मामले हैं, जब उन्होंने गरीब पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए फ्री में केस लड़ा। यही नहीं, एक मामले में तो उन्होंने जिलाधिकारी सहित कई बड़े अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा तक दर्ज कराया दिया। ये मामला जीआरडी एकेडमी से संबंधित था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन सबसे बावजूद जेडी जैन की बार एसोसिएशन से पटरी एक बार नहीं बैठी और उन्हें विरोध झेलना पड़ा। फिर भी भी कहा जाए तो वह क्राइम के मामलों में एक जाने माने वकील थे। वरिष्ठ अधिवक्ता जैन बीते कुछ महीनों दिन से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन की सूचना से अधिवक्ता समाज में शोक व्याप्त है। शोक स्वरूप अधिवक्ताओं ने आज एक दिन कार्य से विरत रहने का फैसला किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जेडी जैन एक जुलाई 2005 से 2007 तक मुख्यमंत्री के सलाहकार रह चुके हैं। पांच जुलाई 1952 में जन्मे जेडी जैन के ओल्ड सर्वे रोड स्थित घर पर एक बार डकैती भी पड़ी थी। परिवार के सदस्यों को बंधक बनाकर घर में लूटपाट की गई थी। इस मामले में रितेश और बृजेश गिरोह का नाम सामने आया। लूट के बाद उनका एक साथी रायवाला क्षेत्र में मारा गया। कुछ साल बाद में रितेश और बृजेश भी एनकांउटर में मारे गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जेडी जैन पत्रकारों से भी मित्रवत व्यवहार रखते थे। अब तो कोर्ट रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार शायद ही एक एक कोर्ट में जाते हों या फिर संबंधित एक एक वकीलों से मिलेत होें। तब यानि करीब तीस साल पहले तक पत्रकार कोर्ट में जाने के साथ ही जेडी जैन से मिलने जरूर जाते थे। क्योंकि उनके पास लेटेस्ट खबरें होती थीं। वे एक हास्य कवि भी थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार संघ के कार्यक्रम में वह स्टेज में चढ़कर अपनी हास्य कविताओं को भी सुनाते थे। उनकी खासियत ये थी कि जब वे कविता बोलते थे तो चेहरे ही भाव भंगिमाएं भी उसी तरह कर देते थे। पत्नी की तारीफ में उनकी कविता- तुम सुंदर हो, वहीं पत्नी ने पलटकर कहा कि तुम बंदर हो। मेरी याददाश्त में कुछ इस तरह की कविता में जब बंदर का जिक्र आया तो उन्होंने अपना चेहरा बंदर की तरह बना दिया। ये उनकी खासियत थी।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।