नवरात्र का दूसरा दिनः मां ब्रह्मचारिणी की करें पूजा, इन बातों का रखें ध्यान
नवरात्रि में नौ दिनों तक मां के नौ स्वरुपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महगौरी, मां सिद्धिदात्री की पूजा क्रमानुसार की जाती है। मां के ये स्परुप अत्यंत कल्याणकारी और हर विपदा को हरने वाले हैं। मां के इन नौं स्वरुपों का अलग-अलग महत्व है। नवरात्रि के नौ दिनों तक व्रत और पूजन करने वाले साधक का मन हर दिन अलग चक्र में स्थापित होता है। जानते हैं कि किस दिन साधक का मन किस चक्र में स्थापित रहता है। यहां डॉ. आचार्य सुशांत राज दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की महिमा व पूजा के संबंध में बता रहे हैं।
नवरात्रि में दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनके नाम का अर्थ तप का आचरण करने वाली है। इनका स्वरुप तेजमय और अत्यंत भव्य है। ये अपने दाएं हाथ में कमंडल तो बाएं हाथ में माला धारण करती हैं। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में रहता है। मां के दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं की पूजा का विधान है। इनके नाम के अनुसार ही इनकी पूजा करने से साधक का मन स्थिर होता है। इनको शक्कर, मिश्री का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि इससे घर के सदस्यों की आयु लंबी होती है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शिव मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।