धरती पर कयामत की वैज्ञानिकों ने बताई डेट, छा सकता है अंधेरा, जंगलों में आग और एसिड की बारिश
दुनिया भर के वैज्ञानिक ब्रह्मांड में तारामंडल से लेकर कई ग्रहों का अध्ययन कर रहे हैं। साथ ही धरती की तरफ बढ़ने वाले एस्टेरॉयड को लेकर भी समय समय पर भविष्यवाणी की जाती रही है। कई बार किसी एस्टेरॉयड के धरती से टकराने की संभावनाओं के खतरे नजर आने लगते हैं और कभी कोई नया तारा वैज्ञानिकों की नज़र में आ जाता है। आपने अब तक धरती पर कयामत को लेकर बहुत सी भविष्यवाणियां सुनी होंगी, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसकी डेट भी बता दी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
22 एटम बमों से ज्यादा ताकत से टकराएगा उल्कापिंड
डायनासोर्स के इस धरती से खत्म होने को लेकर आपने बहुत सी थ्योरीज़ सुनी होगीं, जिसमें सबसे ज्यादा मानी जाने वाली थ्योरी कहती है कि धरती से विशाल उल्कापिंड के टकराने के बाद ही इस जीव का अस्तित्व खत्म हो गया। अब वैज्ञानिकों ने एक बार फिर धरती से इतने बड़े उल्कापिंड के टकराने की डेट रिवील कर दी है। अनुमान है कि जब यह उल्कापिंड धरती की सतह से टकराएगा तो इसकी ताकत 22 एटम बमों से भी ज्यादा होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बताई गई कयामत की डेट
जो एस्टेरॉयड धरती से टकराएगा उस स्पेस रॉक का नाम बेनू (Bennu) है। ये हमारी धरती से होकर यूं तो हर 6 साल में गुजरता है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ये 24 सितंबर, 2182 को जब गुजरेगा तो धरती से टकरा जाएगा। हालांकि ये तारीख अभी बहुत दूर है, लेकिन इंटरनेशनल स्पेस एजेंसी नासा इस काम में लग गई है कि कुछ भी करके इसे डायवर्ट किया जा सके। अब से 7 साल पहले एक स्पेसक्राफ्ट इससे जुड़े सैंपल लेने के लिए भेजा गया था, ताकि उससे मिलने वाली जानकारी का इस्तेमाल धरती को बचाने में किया जा सके। उम्मीद है कि 24 सितंबर तक इसे उताह डेज़र्ट पहुंचाया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नासा के वैज्ञानिक भी है परेशान
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के Goddard Space Flight Center के प्रोजेक्ट मैनेजर रिच बर्न्स ने संडे टेलिग्राफ से बात करते हुए बताया कि सात साल के सफर का ये अंतिम पड़ाव है, जब वे उल्कापिंड पर रिसर्च कर रहे हैं। स्पेसक्राफ्ट के ज़रिये इसका 250 ग्राम हिस्सा लाया जा रहा है। इस पर आगे शोध किया जाएगा। स्पेस रॉक एक मील बड़ा है, जबकि डायनोसॉर्स को तबाह करने वाला उल्कापिंड 6 मील चौड़ा था। वैसे तो 1750 में से सिर्फ एक ही ऐसा चांस नजर आ रहा है कि जब बेनू उल्कापिंड धरती से टकरा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कयामत से तीन करोड़ साल पीछे चल रही है धरती
विशेषज्ञों का मानना है कि कयामत का दिन विज्ञान की कोई परिकल्पना ना होकर एक वैज्ञानिक तथ्य है। हालांकि, धरती कयामत के दिन से अभी 3 करोड़ साल पीछे चल रही है। दरअसल, विशेषज्ञों ने पाया है कि धरती पर हर 2.7 करोड़ साल बाद कोई ना कोई प्रलय आता है, लेकिन आखिरी प्रलय 6.6 करोड़ साल पहले आया था, जिसमें एक ऐस्टरॉइड या धूमकेतु के गिरने से डायनोसॉर धरती से पूरी तरह गायब हो गए। इस तरह अभी धरती प्रलय के समय से काफी पीछे चल रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक साइकल के रूप में चलता है ये क्रम
धरती पर प्रलयकारी घटनाएं, जैसे उल्कापिंडों का गिरना या फिर किसी विस्फोट का होना एक साइकल में चलता है। नए स्टेटिस्टिकल अनैलेसिस के जरिए अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि विनाशकारी घटनाओं के लिए होने वाली धूमकेतुओं की बारिश 2.6 से लेकर 3 करोड़ साल पर होती है, जब ये आकाशगंगा से गुजरते हैं। अगर ये धरती से टकरा जाएंगे तो इससे दिन में ही अंधेरा छा जाएगा। जंगलों में आग लग जाएगी। एसिड की बारिश होने लगेगी। साथ ही ओजन की परत पूरी तरह तबाह हो जाएगी। इस प्रलयकारी घटना से धरती पर रहने वाले और समुद्र में रहने वाली समुद्री जीव पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धरती के भीतर मौजूद लावा बनता है खतरा
शोध के दौरान वैज्ञानिकों को यह भी पता चला है कि अभी तक जमीन और पानी पर एकसाथ आठ प्रलयकारी घटनाएं तब घटित हुईं, जब धरती के भीतर मौजूद लावा बाहर निकलकर आ गया। इस घटना के चलते जहरीली ग्रीनहाउस गैसें पैदा हुईं, जिससे धरती पर मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई और जीवन समाप्त हो गया। उन्हें ये भी पता चला है कि कयामत का दिन हमारे ग्रह द्वारा आकाशगंगा का चक्कर लगाने से भी पता चलता है। न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इस शोध के लेखक माइकल रैम्पीनो ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि किसी वस्तु के टकराने का बड़ा प्रभाव और पृथ्वी के भीतर होने वाली आंतरिक गतिविधि, जिससे लावा बाहर आता है, ये 2.7 करोड़ साल के अंतर पर आ सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
विशाल टक्कर और ज्वालामुखियों का फटना भी विनाश का कारण
प्रोफेसर रैम्पीनो ने ये भी बताया है कि पिछली तीन प्रलयकारी घटनाएं 25 करोड़ साल पहले हुई, जब सबसे बड़ा प्रभाव देखा गया था। ये सभी वैश्विक तबाही और सामूहिक विनाश का कारण बनने में सक्षम थे। वैश्विक स्तर पर सामूहिक विनाश की ऐसी भयंकर घटनाएं बड़े टक्करों और विशाल ज्वालामुखियों के फटने से हुई होंगी। इन सभी नतीजों को हिस्टॉरिकल बायोलॉजी पत्रिका में छापा गया है।
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