31 जनवरी को मनाया जायेगा संकष्ट चतुर्थी, जानिए मुहूर्त, महत्ता, व्रत कथा, बता रहे हैं डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
माघ मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकटा चौथ के नाम से जाना जाता है। यह तिथि भगवान गणेश के समर्पित है। इस दिन गणेश जी का पूजन और व्रत करने से वे आपके जीवन के सभी विघ्नों का नाश करते हैं। इस बार संकष्ट चतुर्थी 31 जनवरी दिन रविवार के पड़ रही है। इस तिथि को वक्रतुंडी चतुर्थी या तिलकूट चतुर्थी भी कहते हैं। यहां डॉक्टर आचार्य सुशांत राज इस व्रत की महत्ता, कथा के संबंध में बता रहे हैं।
ये है शुभ मुहूर्त
सकट चौथ का पर्व पंचांग के अनुसार 31 जनवरी 2021 को मनाया जाएगा। इस दिन चन्द्रोदय का समय रात्रि 08 बजकर 27 मिनट है। यदि चतुर्थी तिथि की प्रारंभ की बात करें तो ये चतुर्थी तिथि 31 जनवरी 2021 को रात्रि 08 बजकर 24 मिनट से आरंभ होगी और इस तिथि का समापन 1 फरवरी 2021 को शाम 06 बजकर 24 मिनट पर होगा।
भगवान गणेश को समर्पित है ये पर्व
सकट चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश जी को समर्पित है। सकट पर भगवान गणेश जी की विधि पूर्वक पूजा करने से जीवन में आने वाले समस्त प्रकार के कष्टों को दूर करने में मदद मिलती है। सकट चतुर्थी पर तिल और गुड से बनी चीजों का खाने की परंपरा है। इसीलिए इसे तिलकुटा भी कहते हैं। हिंद भाषी राज्यों में सकट चतुर्थी का पर्व बड़े ही भक्तिभाव से मनाया जाता है।
बच्चों के लिए माताएं रखती हैं व्रत
सकट चौथ पर मां अपने बच्चों के लिए व्रत रखती है। ऐसा माना जाता है कि जो बच्चों को गंभीर रोग से पीड़ित होते हैं, उनके लिए यदि मां इस दिन व्रत रखें तो लाभ मिलता है। वहीं यह व्रत बच्चों को बुरी नजर से भी बचाता है। इसके साथ ही जो मां अपने बच्चों के लिए इस दिन व्रत रखती हैं वे बच्चे जीवन में कई तरह के संकटों से दूर रहते हैं।
ये लगाया जाता है भोग
सकट चौथ का व्रत जीवन में सुख समृद्धि लाता है। वहीं इस व्रत को संतान के लिए श्रेष्ठ माना गया है। मां द्वारा रखा जाने वाला यह व्रत बच्चों की शिक्षा में आने वाली बाधा को भी दूर करने वाला माना गया है। संतान पर भगवान गणेश की कृपा और आर्शीवाद बना रहता है। इस दिन मां अपने बच्चों के लिए निर्जला व्रत भी रखती हैं। इस दिन भगवान गणेश को तिल, गुडॉ, गन्ना और तिल का भोग लगाया जाता है। संकट चौथ पर मिट्टी से गणेश जी बनाएं और पूजा करें। इस दिन गणेश जी को पीले वस्त्र पहनाएं। शाम को चंद्रमा को जल देकर व्रत समाप्त करें। तिल और गुड़ का भोग लगाएं।
धर्मराज युधिष्ठर ने किया था ये व्रत
इसे वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ और तिलकुटा चौथ भी कहते हैं। इस व्रत में तिल और बूरा मिलाकर तिलकूट बनाया जाता है। भगवान श्रीगणेश के पूजन के बाद चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करें। चंद्र देव से घर-परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करें। ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण की सलाह पर धर्मराज युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया था।
संकट चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, संकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।
गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।
स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें। इस पर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया। इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला। तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।
अन्य व्रत कथा
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा-हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा। राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता।
इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी-मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा। तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को संकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा-भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।
सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक संकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शनि मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
मो. 9412950046
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।