देहरादून के प्रसिद्ध रंगकर्मी रेवानंद भट्ट का निधन, घासीराम कोतवाल और सखाराम बाइंडर से मिली थी पहचान

देहरादून के प्रसिद्ध रंगक्रमी रेवानंद भट्ट का करीब 62 साल की उम्र में निधन हो गया। वह पिछले कुछ साल से पक्षघात के शिकार थे। कल शाम देहरादून के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन पर दून के रंगकर्मियों में गहरा शौक है।
रेवानंद भट्ट नगर निगम देहरादून में टैक्स अनुभाग में कार्यरत थे। वह मोहनी रोड पर अपने आपास में रह रहे थे। बताया जा रहा है कि करीब दो साल पहले पहले नगर निगम से सेवानिवृत्त हो गए थे। वह पक्षघात के शिकार हुए थे। हाल ही में उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां कल 31 मार्च की शाम उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अतिंम संस्कार हरिद्वार में किया जा रहा है।
रेवानंद भट्ट अपने पीछे पत्नी, शादीशुदा बेटी, एक बेटा सहित भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं। रंगकर्मी गजेंद्र वर्मा बताते हैं कि रेवानंद भट्ट के रूप में हमने एक बड़ा कलाकार खो दिया। उनकी आवाज का ही जादू था कि अभिनय के साथ ही वह नाटकों के मंचन के दौरान पार्शव गीत के लिए भी हमेशा आगे रहे। वह ढोलक बजाने में भी माहिर थे।
युगांतर संस्था के संयोजक रमेश डोबरियाल के मुताबिक रेवानंद भट्ट युगांतर संस्था से जुड़े रहे। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान वह उत्तराखंड सांस्कृतिक मोर्चा के सचिव भी रहे। रंगकर्म और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
रंगकर्मी सतीश धौलखंडी बताते हैं कि रेवानंद भट्ट नए कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत रहे। वह कलाकारों को प्रोत्साहित करते थे। उन्हें मंच प्रदान करते थे। उनकी खूबियों को पहचान कर उसी अनुरूप उनसे काम लेते थे। उनके निधन पर दून के रंगमंच को बड़ा झटका लगा है।
जनकवि डॉ. अतुल शर्मा बताते हैं कि उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान जनगीतों का उनका जो पहला कैसेट बना “लड़के लेंगे भिड़ के लेंगे छीनके लेंगे उत्तराखंड ” उसमे बेहरतीन ढोलक की ताल रेवानंद भट्ट जी ने ही दी थी। उनके लिखे इस गीत को सांस्कृतिक मोर्चा के तहत असंख्य जगह प्रस्तुत किया। बेहतरीन इंसान और बेहतरीन कलाकार भट्ट जी को सादर विनम्र श्रद्धांजलि।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।