जयंती पर हिमालय पुत्र बहुगुणा को किया याद, धस्माना ने बताया नेताजी बोस और गांधीजी के व्यक्तित्व का मिश्रण
देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व केंद्रीय मंत्री, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री मंत्री एवं हिमालय पुत्र स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की 105 वीं जयंती आज उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में धूमधाम से मनाई गई। स्वर्गीय बहुगुणा के अनुयाई रहे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना प्रातः 11 बजे घंटाघर स्थित बहुगुणा शॉपिंग कांपलेक्स पहुंचे। जहां उन्होंने साथियों के साथ पहुंच कर बहुगुणा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित किए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस अवसर पर धस्माना ने कहा कि स्वर्गीय बहुगुणा का व्यक्तित्व महात्मा गांधी व नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के व्यक्तित्वों का मिश्रण था। जहां गांधी की तरह सर्व धर्म समभाव व अनेकता में एकता के सिद्धांत के वह प्रबल समर्थक थे। वहीं, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तरह दृढ़ निश्चय व हमेशा नई चुनौतियों को स्वीकार करने को क्षमता बहुगुणा जी में थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धस्माना ने कहा कि इस देश की आज़ादी के बाद संसदीय इतिहास में अनेक नेताओं ने समय समय पर दल बदल किया। कोई सिद्धांतों के आधार पर एक पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल हुआ तो कोई व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए। आजकल तो नेता कपड़ों की तरह दल बदल लेते हैं। 1980 से पहले किसी भी सांसद ने दल बदलने के साथ सांसदी से इस्तीफा नहीं दिया। ऐसा करने वाले देश के पहले नेता थे हेमवती नंदन बहुगुणा रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि बहुगुणा 1980 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष थे और कांग्रेस के टिकट पर गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद चुने गए थे। चुनाव के तुरंत बाद मंत्रिमंडल गठन को लेकर उनके इंदिरा गांधी के साथ मतभेद हुए और कुछ महीनों के बाद ही उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। साथ ही यह कहा कि जिस पार्टी के चुनाव चिह्न पर वह चुनाव जीते हैं, नैतिकता के आधार पर वे सांसदी से भी त्यापत्र दे रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि उस समय देश में दल बदल कानून नही था और बहुगुणाजी के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी कि उनको दल बदल के कारण सांसदी खोनी पड़ेगी, लेकिन उन्होंने नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दिया और वे ऐसा करने वाले देश के पहले नेता बने। इससे पूर्व आचार्य नरेंद्र देव ने अपने आठ अन्य साथियों के साथ उत्तरप्रदेश की विधानसभा से त्यागपत्र दिया था। सांसद के रूप में यह रिकॉर्ड हेमवती नंदन बहुगुणा जी के नाम दर्ज है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि बहुगुणा बहुत जीवट वाले नेता थे और उन्होंने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। चाहे उनको उसके लिए कितनी भी कीमत चुकानी पड़ी हो। वह कभी झुके नहीं और अपने सिद्धांतों पर हमेशा अडिग रहे। धस्माना ने कहा कि 17 मार्च 1989 को जब उनका निधन हुआ, तो देश के प्रख्यात स्तंभकार खुशवंत सिंह ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए लिखा था कि भारतीय राजनीति में गांधी व नेहरू के बाद भारत ने एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष नेता खो दिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर ललित भद्री, एस पी बहुगुणा, परणिता बडूनी, देवेंद्र सिंह, प्रमोद गुप्ता, ब्रह्मदत्त शर्मा, आनंद सिंह पुंडीर, मेहताब, प्रवीण कश्यप, अवधेश कथिरिया, अर्जुन सोनकर, राम कुमार थपलियाल, राजेश उनियाल आदि उपस्थित थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।