कविता के माध्यम से पढ़िए वीर सपूत कफ्फू चौहान की कहानी, प्रस्तुतकर्ता: श्याम लाल भारती
वीर सपूत कफ्फू चौहान
ये मेरे गढ़ भूमि वासियों,
जरा याद करो ये कुर्बानी।
उप्पू गढ़ का गढ़पति था वो,
कितना वीर था वो स्वाभिमानी।।
उत्तराखंड गढ़ भूमि के लोगों,
जरा नयनों में भर लो पानी।
कुर्बान हुआ टिहरी रियासत पर,
जरा याद करो उसकी कहानी।।
मातृभूमि रक्षार्थ प्रार्णोंतसर्ग किया,
कफ्फू चौहान की है ये कहानी।
16 वीं सदी का बीर था वो,
मरकर भी है उसकीअमर कहानी।।
सौंटियाल गढ़ नाम था पुराना
ये बात सुनी लोगों की जुबानी
कभी कभी जन्म लेते ऐसे बीर
उसे गढ़ की थी लाज बचानी।
वीर पुरुष अजयपाल की तुम,
सुनो गढ़ भूमिवासियों ये कहानी।
1500 से 1520 तक सभी गढ़ों पर,
वो लगा चुका था अमिट निशानी।
क्रूर नज़रे गढ़ी थी उप्पू गढ़ पर,
उप्पू गढ़ पर थी धाक जमानी।
भिजवा डाला संदेश उप्पू गढ़ में,
पर कफ्फू ने भी हार न मानी।।
कूद पड़े रणबाकुरें रणभूमि में,
लुहुलुहान हो गई उनकी जवानी।
अजयपाल था बड़ा अभिमानी,
उप्पू गढ़ पर विजय थी पानी।
लड़ता रहा युद्ध अंतिम क्षणों तक,
कफ्फू था वीर बलिदानी।
हृदय द्रवित हो उठा उसका,
गढ़ भूमि की थी लाज बचानी।।
करुण रुदन चौ दिशाओं में,
ख़तम होनी थी उसकी जवानी।
शीश चरणों में अजयपाल के,
नहीं आज उसे थी भेंट चढ़ानी।।
इससे पहले शीश चरणों में गिरे,
माटी बीर ने मुंह में डाली।
झटका देकर शीश दूर जा गिराया,
मरकर भी खुश था वो बलिदानी।
बोल उठा हृदय से अजयपाल अब,
धन्य है कफ्फू तेरी जवानी।
हे!मातृभूमि वीर तुम जीते मैं हारा,
कैसी अजब गजब तेरी कहानी।।
स्वाभिमान की खातिर प्राण तज दिए,
यही थी कफ्फू की गजब कहानी।
याद रखेगी गढ़ भूमि सदा तुझे,
अजयपाल से बिल्कुल हार न मानी।।
सुनता हूं जब भी मैं ये कहानी,
हृदय में हूक लेती है जवानी।
खून खौलने लगता सुनकर,
कैसा था अजयपाल अभिमानी।।
युगों युगों तक याद रहेगी,
कफ्फू तेरी अमर कहानी।
जीना नहीं युगों युगों तक,
गढ़ भूमि की थी लाज बचानी।।
ललनाओं में जौहर कर प्राणाहुति दी,
यही थी तेरी अमर कहानी।
शत शत नमन तेरे बलिदान को,
अमिट रहेगी सदा तेरी कहानी।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
भौत लाजवाब रचना, कन्फर्म चौहान की