पढ़िए साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-हिकमत

हिकमत
जंजोऴौ बात न कैर, योत रात- दिन रैंदा छन.
फिरोड़ा- फिरोड़ लगीं रैंद, इना दिन चैंदा छन..
जतगा छीं रोग-सोग, सब मनख्यूं कु बड़्यां छन.
कना – कना असाध रोग भि, मनखि सैंदा छन..
हिकमत से जौन कर काम-काज, घड़ि बे घड़ि.
वी मनखि त दुन्यम रैकि, अगनै कु बढ़ेंदा छन..
भोग- भाग सब छिं, समझांणा – बुथ्यांणा बत्ता
ऐक्सिडेंटल भि त, बेमौत ज्यू-ज्यान गवेंदा छन..
धरण चैंद-ज्यूम धीरज, दगड़म राखा हिकमत.
उनबि टूंणा-टुटका छल-छपट, अज्यूं छल्ये़दा छन..
इक्कीस्वीं सदि आई, चै बाइस्वीं अज्यूं आली.
नैं- नैं बिचारौं लोग, दुन्यम सदनि दिखेंदा छन..
‘दीन’ ! घैर-भैर- बढणूं बैर, चल़ड़ी रैंद सिकासैर.
दिल-दिमागा कमजोर मनखि, सदनि नपेंदा छन..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।






रचना प्रकाशन क वास्ता लोकसाक्षी का आभार,
कविता म संदेश च कि हमथैं हिकमत से काम लींण चैंद, अरे हर काम साहस से करण चैंद.