कविता में पढ़िए- प्रकृति के चितेरे कवि कुंवर बर्तवाल के जन्मदिवस पर उनकी कहानीः शिक्षक श्याम लाल भारती
प्रकृति प्रेमी कुंवर बर्तवाल
मैं आज सभी के, करुण स्वर सुन चुका।
पर मेरी वेदना, कोई गा न सका।।
ये पंक्तियां, याद दिलाती हैं मुझे।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
20 अगस्त1919 को जन्मे थे वे।
वो मां का, आंचल पा सका।।
नाम था, चन्द्र कुंवर बर्तवाल उनका।
खुशियां, मां के हृदय में बहा सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
पिता भूपेंद्र बर्तवाल के घर जन्मे थे।
प्रकृति में, प्रकाश पुंज आ सका।।
मालकोटी गांव,रुद्रप्रयाग जन्म स्थली उनकी।
धरा में, खुशियां खूब ला सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
प्रकृति का चितेरा, कालिदास को गुरु माना।
तभी विराट हृदय, विराट ज्योति रच सका।।
कंकड़ पत्थर, काफल पाकू, मेघ नंदिनी में।
प्रकृति प्रेम, चन्द्र असीम लिख सका।।
पयस्वनी, जीतू, नागीनी, गीत माधवी।
रचनाएं चन्द्र, हृदय से पिरो सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
अंग्रेजी शासन पर, तीखा प्रहार उनका।
मैकाले के खिलौने, हृदय डगमगा न सका।।
देश प्रेम से असीम भरी कविता “छुरी” उनकी।
देश प्रेम, सबके मन में जगा सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
मित्र शंभू बहुगुणा चितेरे, बहुत थे उनके।
नहीं प्रेम कोई, उनका भुला सका।।
300 से भी अधिक, रचनाओं का संग्रह।
चितेरा बह गुणा ही, उनका करा सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
उनका असीम, प्रकृति प्रेम ही मुझको।
आज प्रकृति प्रेम, में उलझा सका।।
प्रेम अथाह उनका,बस हृदय में मेरे।
नहीं, तभी तो मैं भुला सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
सांसे थम रही थीं, वदन टूट रहा था।
तभी काल, मृत्यु शैय्या के पास आ सका।।
मौत के जाल भंवर में, काल उन्हें।
तभी तो, अपने पास ले जा सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
कभी कभी, जन्म लेते ऐसे हिम कवि।
जो प्रकृति प्रेम की, रस धार बहा सका।।
सो गया सदा के लिए, प्रकृति की चादर ओढ़े।
सचमुच वो आज, प्रकृति का हो सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो मैं लिख सका।।
हृदय दुःखी हो चुका, अब मेरा भी।
इतना ही मैं, बस लिख सका।।
पर याद, रखेगी गढ़ भूमि सदा उन्हे।
प्रकृति प्रेम, सबके मन में जगा सका।।
खुश हूं उनके लिए।
कुछ तो, मैं लिख सका।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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