Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

June 18, 2025

पढ़िए गढ़वाली लघु कथाः पुंगड़ी- पटळी, प्रस्तुतकर्ता-सरिता मैन्दोला

पढ़िए गढ़वाली लघु कथाः पुंगड़ी- पटळी, प्रस्तुतकर्ता-सरिता मैन्दोला। शिक्षिका पौड़ी गढ़वाल में सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक हैं।

पुंगड़ी- पटळी

सरोज मैडम (सरू) इस्कोल बटि घौर आयी। वीन सरासरि कैकि चा-पाणि पेई। अर
कपड़ा -लत्ता बदलि की दाथी उठै कि चलि गे पुंगड़ा मा रयांस। लोबिया निकळण कुणि। वीन अपण आदिम (पति) कुणि ब्वाल कि-जरा मि स्यूं लोब्या, रयांस निकाळिक ल्हयांदु । वींकु कैमा बिटी द्वी, चार कट्टा मोळक मांगिकी लयां छा। एक कट्टा उठै मुण्डमां। अर लासणकि। राई क क्यारी मां धोळि द्या। बाटा क कुड़ा की एक बुढडी़ सासु चौक क तिरळि परै बैठीं छै। वीन सरू तै देखि त ब्वाल-हे मास्टर्याण ब्वारी तेरि लासण त गुडण्या बि ह्वैगे।अर मेरी बौड़्यूंन त अज्यूं पुंगड़ुबि नि बणै।
तुत ब्वारी जनमा करदी ह्वैलि घार बि अर पैटैण्ट अपणि ड्यूटी बि टैम पर। सबसे पैलि त्यारु ही सग्वड़ हून्द तयार। सरुन ब्वालकि-जी जैदिन मेरि छुट्टी रैंद त वैई दिन मि यूं पुंगड़ी पटळ्यूं कु काम करदु। जरा स्याम बगत बि जै ल्यूंद कबि- कबि।


पुंगड़ाम जैकि सरुन जु पक गे छा वूं फ्वाळों तै अपणि खुचलि परै निकळिनी। अर फिर थैला भोर द्या | विंक पुंगड़क ढीस पर कद्दुक बीज भी बुत्यां छ्या। त वा कद्दुक लगुलु लट्वळण बै ग्या। वींथैं वख दस,बारा कद्दू की दाणि मिल गेनि जुकि झेल प्याट छ्या। वीन कुछ बियां त बांट देनि गौंमा ही जौंक नि छ्या। अर कुछ बादमा कुणि रूड़ि मा रैलू बणाणाकुणि धैर देनि।
हर सीजन क साग सगोड़ी सरू करदी रैंदी छे। द्वी झणा लग्यां रैंदा छा,ब्च्चा खिजेंदा बि छ्या कि- मां, पितजि क्या लग्यां रंदा तुम अराम कारा अब। त वू बुल्दा छा कि- बबा अपणु घारक सग्वड़ि पत्वड़ि, पुंगड़ी -पटळिकु नाज- पाणि शुद्ध हुंद। अर अपणु ज्यु -जामा बि सै रैंदु कसरत हूणी रांदी, क्वी योग, जिम जाणक जर्वत नि पुड़दी। इस कोलक बच्चौं तै बि सरू कृषि व बाग बग्वनि क बारा म नयी नयी जानकारी देणी रैंदी।


कब्बी दाना-सयणा क्वी सरू कु बुल्दा कि- हे!मस्टर्याण ब्वारी, तुम तै भगवान क सब कुछ दियूं च। त क्यांकु करचुड़ा करचोड़ पर लग्यां रंदौ तुम द्वी झण?-जैमा भण्ड्या हूंद त वैकि धीत नि भरेन्द। यांमा तब सरू वूंथै समझांदी कि-पुंगड़ाकु काम करण से चुस्ती, फुर्ती बणी रैंद, हत्त, खुट्टा बि ठीक रंदन। तज्जु साग -पात बि मिलुणी लग्यूं रैंदु। त नखुरु क्या च? अर-गात क्या जुगाण, एक दिन यू ज्यूंरन ही खाण।
तब लोग बुल्दा छा कि-हां ब्वारी बुनी त तू ठीक ई छे पर अजकाल क मतण्यां लोगों, परै। रौं सुक्खी, मोर भुक्खी वळु आण खूब फबणूच। सरून फिर ब्वाल -पर जु हम जना नौकिरि चाकिरि वळा पुंगड़क काम करदां त लोग बथा बि बणदिन। पर हम त ज्योरौ वूंकि बातुं पर ध्यान नि दींदा।पुंगड़ोंक काम कनमा क्यांकि शरम। एक दिन सबून ये माटु मा ही मिल जाण।

लेखिका का परिचय
नाम- सरिता मैन्दोला
सहायक अध्यापक, राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय, गूमखाल, ब्लॉक द्वारीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “पढ़िए गढ़वाली लघु कथाः पुंगड़ी- पटळी, प्रस्तुतकर्ता-सरिता मैन्दोला

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page