मसूरी की पैदल यात्रा शुरू होती थी राजपुर से, कभी था व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र
देहरादून के उत्तर में 11 किलोमीटर की दूरी पर बसा रागपुर कभी सम्पन्न व्यापारिक बस्ती थी।
जब मसूरी मोटर मार्ग नहीं था और राजपुर हो देहरादून को जौनसार बाबर, जौनपुर और रवाई के क्षेत्रों से जोड़ता था, तब यहां से शुरू होती थी मसूरी की पैदल यात्रा। राजपुर में वह सभी था जो एक छोटे नगर में होता है। प्रार्थना-स्थल, रात्रि विश्राम के लिए होटल जिनमें प्रमुख एजेन्सी होटल, प्रिंस ऑफ वेल्स तथा कैलेडोनिया होटल थे। मोटर मार्ग ने इसे उजाड़ दिया और राजपुर एक खण्डहरी बस्ती बन गया।
जब अंग्रेजों की नजर मसूरी पहाड़ी पर पड़ी और वे वहां बसने लगे तो उन्होंने व्यावसायिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में राजपुर को विकसित किया। तब मसूरी और आसपास के लोग पैदल या घोड़े, खच्चर से राजपुर पहुंचते थे। यहीं से वे जरूरत का सामान लेकर जाते थे। राजपुर के निकट से ही मसूरी के लिए पैदल मार्ग भी विकसित किया गया। यह ट्रैक आज भी ट्रैकिंग के लिए सबसे आकर्षक का केंद्र है।
राजपुर में सामुदायिक विकास मंत्रालय के ट्रेनर्स ट्रेनिंग सेन्टर जो अब हैदराबाद में हैं – और को-आपरेटिव ट्रेनिंग सेन्टर जैसे केन्द्रों की स्थापना से जो नवजीवन राजपुर को न मिल सका, वह इसे तिब्बती शरणार्थियों के बसने से प्राप्त हुआ। तिब्तती डिजाइन तथा तकनीक के ऊनी कालीनों के गृह उद्योग के स्पंदन के साथ तिब्बती महिलायें इसको रीढ़ हैं।
पंडित विजय लक्ष्मी जो राजपुर में लगभग एक दशक तक रहीं, उनके शब्दों में राजपुर में कुछ जादू है, जिसका वशीकरण प्रभाव है। जब बरामदे में बैठे बैठे मैं उस ज्योत्सना को देखती हूं, जो पहाड़ों की रेखाओं को उभार कर उन्हें परीलोक जैसा रहस्यमय तथा मनमोहक बना देती है, तो मैं वह सब भूल जाती हूं, जो राजपुर खो चुका है।
आराम स्थल के रूप में विकसित थी ढाक पट्टी
राजपुर स्थित ढाक पट्टी कभी एक आराम स्थल के रूप में विकसित थी। आवागमन के लिए यह मसूरी का प्रवेश द्वार था। यह मार्ग राजपुर, शहनशाही, झाडीपानी, बालागंज होते हुए किंक्रग पहुंचता था। अंग्रेजों ने यहां मोटर मार्ग बनाने से पहले रेल लाइन बिछाने की योजना भी बनाई गई, लेकिन व्यापारियों के विरोध के कारण उसे रोक देना पड़ा।
मसूरी रेल लाइन का विरोध के चलते रोका निर्माण
तब अंग्रेजों ने रेल लाइन के लिए राजपुर व मसूरी के बीच सुरंग निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया था।जाखन क्षेत्र में भी कई स्थानों पर रेल की पटरी बिछाने का कार्य तक शुरू हो चुका था। जिसे बीच में ही रोकना पड़ा। विरोध करने वाले व्यापारियों का कहना था कि रेल पहुंचने से उनका राजपुर में व्यापार चौपट हो जाएगा।
राजपुर में पुलिस थाना
पर्यटन व व्यापारिक दृष्टि से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण था। अतः सुरक्षा प्रबन्ध हेतु अंग्रेजों ने राजपुर में एक पुलिस थाना बनाने का निर्णय लिया। 5 मार्च सन् 1885 में राजपुर में थाना बनाने की स्वीकृति दी गयी। इस थाने का नियंत्रण उन दिनों मेरठ जिले के बड़े थाने से होता था। राजपुर थाना निर्माण के लिए लगभग तीन बीघा जमीन उपलब्ध करायी गई।
सन् 1886 में इसका विधिवत निर्माण आरम्भ हुआ। इस थाने में सन् 1965 तक उर्दू में कार्य सम्पादित किया जाता था। सन1886 के पश्चात कुछ समय तक यहां अग्रेज भी थानाध्यक्ष पद पर रहे है। सन 1908 से देश के आजाद होने हबीबुल्ला, सोहबर सिंह, जमीलू रहमान व प्रेम सिंह इस थाने के भिन्न भिन्न समय में थानेदार रहे हैं। कभी इस थाने के अंतर्गत देहादून शहर सीमा ले लेकर मसूरी तक के पैदल मार्ग आते थे। अब इस थाने के करीब पांच दर्जन गांव व छोटे कस्बे आते हैं।
साकारी प्रबन्ध संस्थान
राजपुर स्थित सहकारी प्रबन्ध संस्थान, सरकारी कर्मचारियों, समाज के कमजोर वर्ग के शिक्षित बेरोजगार युवकों की भागीतारी को साकारिता के क्षेत्र में सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह संस्थान 1956 से 1964 तक रीजनल को-आपरेटिव ट्रेनिंग सेंटर के रूप में मेरठ में स्थापित था। 20 दिसम्बर 1965 में इसे राजपुर में स्थापित किया गया।
संस्थान का वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम राज्य की स्टैण्डिंग एक्सपर्ट ग्रुप के निबन्धक की अध्यक्षता में होता था। इसमें राज्य के सभी सहकारी विभाग के अधिकारी भाग लेकर अपनी-अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रम को अंतिम रूप से अनुमोदित करते हैं। संस्थान में सामान्य रूप से राज्य के सहकारी आंदोलन से जुड़े मध्यवर्गीय कार्मिकों को प्रशिक्षित किया जाता है।
कुछ कार्यात्मक क्षेत्रों में पिछड़े राज्यों के कर्मचारियों के लिए आधारभूत कार्यात्मक, व्यावहारिक एवं नवीनीकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि नवीन प्रबंधकीय पाठ्यक्रमों के आधार इस संस्थान द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। संस्थान द्वारा पहल कर समाज के कमजोर वर्ग के बेरोजगार शिक्षित युवकों को सहकारिता क्षेत्र में लाभ उठाने के लिए सहकारी समितियों का गठन कर रोजगार से जोड़ने के प्रयासों को प्रमुखता दी जाती है। संस्थान, विभिन्न कार्मिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अन्तर्गत कई हजार मध्यम स्तरीय कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी कर चुका है।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।