पलायन पर राजेंद्र प्रसाद जोशी की कविता- ऐ पहाड़ मेरे पहाड़

ऐ पहाड़, मेरे पहाड़, तेरे पलायन का रोना रोने वाले बहुत हैं,
पर कभी खुद चढ़ना पड़े पहाड़ तो हम रोते बहुत हैं।
पूछो क्यों हुआ पलायन, तो हम सिस्टम को कोसते बहुत हैं,
पर कभी खुद कुछ कदम चलना पड़े, तो लड़खड़ाते बहुत हैं ।
ऐ पहाड़, मेरे पहाड़ तेरे पलायन का रोना रोने वाले बहुत हैं,
पहाड़ से उतरने में खुश, और फिर न चढ़ने के बहाने बहुत हैं,
कभी उम्र, तो कभी तबियत का रोना,
और कुछ नहीं तो कहते पहाड़ों की दूरी बहुत है ।
ऐ पहाड़, मेरे पहाड़ तेरे पलायन का रोना रोने वाले बहुत हैं ।
मांग कर देख लो कभी कोई सुझाव, तो पास इनके लंबी फेहरिस्त है,
पर कभी बिठा दो पहाड़ की बस में,
तो कहते इन रास्तों पर रिस्क बहुत है ।
ऐ पहाड़, मेरे पहाड़ तेरे पलायन का रोना रोने वाले बहुत हैं ।।
राज्य तो बन गया हमारा पहाड़ी, पर लगता है, हम देशी हो गए,
देहरादून, हरिद्वार, काशीपुर, हल्द्वानी में रहते हैं, तो सोचते हम विदेशी हो गए।
खोदकर अपनी जड़ों को दिन रात उनमें अब हम मट्ठा डालते हैं,
न जाने क्यों आज हम पहाड़ी ही, पहाड़ जाने से कतराते हैं,
पहाड़ जाने से कतराते हैं ।।
कवि का परिचय
राजेन्द्र प्रसाद जोशी
अनुदेशक (Instructor)
राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (महिला) देहरादून, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।