दिलचस्प बनी रायपुर विधानसभाः भाजपा और कांग्रेस में कई दावेदार, सबसे बड़ा सवाल- क्या काऊ को नेगी दे सकते हैं टक्कर
उत्तराखंड के देहरादून में सबसे दिलचस्प विधानसभा रायपुर विधानसभा है। इसमें भाजपा और कांग्रेस में दावेदारों की लंबी लाइन है। हालांकि भाजपा के सीटिंग विधायक उमेश शर्मा काऊ इस सीट से लगातार दो बार चुनाव जीते हैं और अभी तक वे ऐसे कंडीडेट रहे हैं, जिन्होंने अधिकांश चुनाव भारी मतों से जीते और इक्का दुक्का ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वहीं, अब सवाल उठता है कि किस पार्टी में ऐसा दमदार कंडीडेट है, जो काऊ को टक्कर दे सकता है। ऐसा टिकट का दावेदार कांग्रेस में नजर आ रहा है। वो हैं सूरत सिंह नेगी, जिनके नाम पर उपलब्धियों की लंबी सूची है और वह आज तक कोई चुनाव बी नहीं हारे। हालांकि कांग्रेस में भी 16 से अधिक लोगों ने रायपुर विधानसभा सीट से दावेदारी ठोकी है। वहीं, भाजपा में भी दावेदारों की लंबी लाइन है।भाजपा में दावेदार
भाजपा में रायपुर विधानसभा चुनाव में दावेदारों की लंबी लाइन है। इनमें उमेश शर्मा काऊ के अलावा युवा नेता रणजीत भंडारी, पूर्व दर्जाधारी राजकुमार पुरोहित, मंडी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष राजेश शर्मा, नगर निगम देहरादून में मेयर का पहला चुनाव लड़ने वाली विनोद उनियाल, पूर्व दर्जाधारी राजकुमार पुरोहित, भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश मंत्री मधु भट्ट, महिला महानगर अध्यक्ष एवं पार्षद कमली भट्ट, एक निजी कॉलेज के स्वामी एसपी सिंह टिकट को लेकर दावेदारी कर रहे हैं।
भाजपा में गुटबाजी और काऊ की स्थिति
इसमें ये भी गौर करने वाली बात है कि रायपुर विधानसभा से विधायक उमेश शर्मा काऊ का पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से 36 का आंकड़ा रहा। गाहे बगाहे रावत के समर्थकों के गुट की ओर से काऊ के कार्यक्रमों की खिलाफत की जाती रही है। हर बार काऊ विरोधियों के सामने भारी पड़ते रहे हैं। हरीश रावत के कार्यकाल में वह कांग्रेस के बगावत करके भाजपा में शामिल हुए थे। ऐसे में बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता उन्हें पचा नहीं पा रहे हैं। वहीं, काऊ अपने कार्यों के बलबूते क्षेत्र की जनता में विश्वास बनाने में सफल रहे हैं। ऐसे में उनके बार बार कांग्रेस में जाने की चर्चा उठती रही है। हर बार वह इसका खंडन करते रहे। हाल ही में उन्होंने कहा कि जब तक जिंदा हूं, भाजपा छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला हूं। उनके पक्ष में एक बात ये भी है कि त्रिवेंद्र के विरोधी काऊ के साथ हैं।
कांग्रेस के दावेदार
कांग्रेस में भी दावेदारों की लंबी सूची है। इनमें रायपुर विधानसभा से पिछला चुनाव हार चुके पूर्व ब्लॉक प्रमुख प्रभुलाल बहुगुणा, हाल ही में आरएसएस छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले महेंद्र नेगी गुरुजी, उत्तराखंड ग्राम प्रधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष एवं वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेश महासचिव सूरत सिंह नेगी, पूर्व पार्षद एवं पूर्व दर्जाधारी बीडी रतूड़ी, पूर्व दर्जाधारी राजेंद्र शाह, पूर्व पार्षद मूर्ति देवी के बेटे प्रवीन त्यागी उर्फ टीटू त्यागी (टीटू त्यागी के भाई भी पार्षद रह चुके हैं, वर्तमान में उनकी भाभी पार्षद हैं।), आदि कांग्रेस के दावेदारों में शामिल हैं।
दावेदारों की स्थिति
कांग्रेस के दावेदारों में पिछला चुनाव लड़ने वाले प्रभुलाल बहुगुणा को लेकर विरोधियों की ओर से एक बात दोहराई जा रही है कि वे कई सालों से एक भी चुनाव नहीं जीते हैं। ऐसे में उन्हें टिकट देकर कांग्रेस का नुकसान हो सकता है। प्रभुलाल बहुगुणा दो बार ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं। इसके बाद वर्ष 2002 से वे कोई भी चुनाव नहीं जीत पाए। 2002 में वह डोईवाला विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए। 2003 में क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हारे। इसके बाद 2008 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव उनकी पत्नी हार गई। खुद भी 2003 में वह बीडीसी का चुनाव हारे। ऐसे में यदि सूरत सिंह नेगी की तरफ देखा जाए तो वह कांग्रेस के दावेदारों में मजबूत नजर आते हैं। वह आज तक कोई भी चुनाव नहीं हारे। हालांकि अभी तक वह भी ग्राम स्तर पर राजनीति करते रहे हैं, लेकिन उनकी जनता में अच्छी पकड़ है।
सूरत सिंह नेगी की राजनीतिक उपलब्धियां
सूरत सिंह नेगी देहरादून जिले में केसरवाला निवासी हैं। वह राजनैतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ ही कानून में स्नातक हैं। करीब 35 साल से वे राजनीति में हैं। साथ ही उन्होंने पत्रकारिता में भी अपनी पहचान बनाई है। 1985 में युवक मंगल दल से उन्होंने समाज सेवा की शुरुआत की। 1988 में ग्राम पंचायत सदस्य बने, फिर उप प्रधान, 2008 में प्रधान बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा। इसके साथ ही वह प्रदेश ग्राम प्रधान संगटन के अध्यक्ष बने और 2010 में उत्तराखंड विधानसभा के समक्ष पंचायतों की समस्याओं को लेकर 24 दिन तक उन्होंने धरना दिया। 2008 में उन्हें निर्मल गांव के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। 2013 में पंचायत शशक्तिकरण का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। उनकी पत्नी शकुंतला नेगी 2003 में प्रधान, 2014 में जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनाव जीती। इसके साथ ही वह कांग्रेस में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वर्तमान में प्रदेश महासचिव और प्रदेश प्रवक्ता हैं।

उमेश शर्मा काऊ की राजनीतिक उपलब्धियां
उमेश शर्मा काऊ ने भी राजनीतिक जीवन की शुरुआत पंचायत सदस्य से की। वह उप प्रधान बने, फिर प्रधान, बीडीसी सदस्य, ब्लॉक प्रमुख, दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे। जिला पंचायत उपाध्यक्ष का उन्होंने चुनाव लड़ा और एक वोट से हारे। इसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी हार गए। देहरादून नगर निगम का गठन होने के बाद पहली बार पार्षद का चुनाव लड़ा और वह जीत गए। इसके बाद डिप्टी मेयर का निर्दलीय चुनाव लड़कर उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही मात दे दी। डोईवाला विधानसभा से दो बार वह निर्दलीय चुनाव लड़े और पराजित हुए। इसके बाद 2012 में वह कांग्रेस के टिकट से रायपुर विधानसभा का चुनाव जीते। फिर भाजपा के टिकट से 2017 में वह सबसे ज्यादा मतों के अंतर यानी कि 35800 के अंतर से जीते। उमेश काऊ की खासियत है कि वह पुराने कांग्रेसी हैं। ऐसे में वे भाजपा के लोगों का काम करने के साथ ही कांग्रेस के लोगों का भी काम करने से पीछे नहीं हटते।
हो सकती है दिलचस्प टक्कर
यदि कांग्रेस से सूरत सिंह नेगी को और भाजपा से काऊ को टिकट मिलता है तो समझा जा सकता है कि काऊ को टक्कर नेगी ही दे सकते हैं। कारण ये ही कि दोनों जमीन से उठे नेता हैं। दोनों ने पंचायतों से राजनीतिक जीवन शुरू किया है। काऊ के चुनाव हारने के आंकड़े कम हैं, तो सूरत सिंह नेगी ने आज तक कोई चुनाव नहीं हारा। अब देखना है कि दोनों ही दलों के लोग किसे तव्वजो देते हैं।





