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September 16, 2024

बोल रही कठपुतली, देश के ज्वलंत मुद्दों पर करो सवाल, बोलोगे नहीं तो भविष्य को करोगे खराब, देखें वीडियो

1 min read

कठपुतली की कहानी में एक सच्चाई जुड़ी है, जो हम समाज में महसूस करते हैं। कठपुतलियां हमेशा से समाज में ज्वलंत मुद्दों को लेकर एक संदेश देने का काम करती आई हैं। कठपुतली देश की ज्वलंत समस्या को उजागर करती है। यहां हम आपको कठपुतली की कहानी दिखा रहे हैं। कहानी है-बोलना जरूरी है। साथ ही एक सवाल है कि क्या आप मकान में हिस्सेदार हैं? यदि हिस्सेदार हैं, तो किस तरह की कठिनाईयों से जूझते हो। यहां कठपुतली सामूहिक घर की जरूरत के साथ ही कुछ जरूरी, कुछ गैर जरूरी बातों की राजनीति पर बात कर रही है। दो कठपुतलियों में आपसी संवाद को इस कहानी में बखूबी दर्शाया गया है। साथ ही बताया गया कि यदि सच नहीं बोलेगे तो देश का भविष्य खराब हो जाएगा। क्योंकि ये सच्चाई है, जब इंसान बोलना छोड़ देता है, यानि सवाल करना बंद कर देता है, तो एक बेजान कठपुतली भी लोगों को समझाने के लिए हमेशा से आगे आई है। चाहे वो राजाओं का दौर के ऐसे कई प्रकरण सुनने को मिलते हैं। यहां आप वीडियो का आनंद उठाइए। अगले सप्ताह आपके लिए हम दूसरी कहानी का दूसरा वीडियो लेकर आएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)


काफी पुराना है कठपुतली का इतिहास
दुनिया में कठपुतली का इतिहास बहुत पुराना है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनी की अष्टाध्यायी में ‘नटसूत्र’ में ‘पुतला नाटक’ का उल्लेख मिलता है। कुछ लोग कठपुतली के जन्म को लेकर पौराणिक आख्यान का ज़िक्र करते हैं कि शिवजी ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर पार्वती का मन बहलाकर इस कला की शुरुआत की थी।  हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन स्थलों से सॉकेट युक्त कठपुतलियां मिली हैं। इससे कला के एक रूप में कठपुतली कला की उपस्थिति का पता चलता है। कठपुतली रंगमंच के कुछ संदर्भ 500 ईसा पूर्व के आसपास की अवधि में मिले हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कठपुतली का लिखित संदर्भ प्रथम और द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास रचित तमिल ग्रंथ शिलप्पादिकारण तथा महाभारत में भी मिलता है। कला के रूप के अतिरिक्त कठपुतली का भारतीय संस्कृति में दार्शनिक महत्व रहा है। भागवत गीता में ईश्वर को सत् , रज और तम रूपी तीन सूत्रों से ब्रह्मांड का नियंत्रण करने वाले कठपुतली के सूत्रधार के रूप में वर्णित किया गया है। भारतीय रंगमंच में कथावाचक को सूत्रधार या सूत्रों का ‘धारक’ कहा जाता था। सम्पूर्ण भारत के विभिन्न भागों में नाना प्रकार की कठपुतली परंपराओं का विकास हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

रामलाल कर रहे हैं नए प्रयोग
देहरादून के ठाकुरपुर निवासी रामलाल भट्ट 12 साल की उम्र के कठपुतली पर प्रयोग रहे हैं। करीब 40 साल से वह कठपुतली खुद बनाते हैं और नचाते हैं। स्कूलों में प्रोग्राम देते हैं। गांव में, संस्थाओं के लिए, युवाओं के लिए प्रोग्राम देते हैं। उनका कहना है कि कठपुतली शिक्षा में भी सहायक है। कठपुतलियों की मदद से किसी विषय को आसानी पढ़ाया जा सकता है। गणित जैसे मुश्किल विषय को भी खेल खेल में आसानी से समझाया जा सकता है। रामलाल ने पर्यावरण बचाने के लिए भी कठपुतली के माध्यम से कई प्रयोग किए। सोशल मीडिया का जमाना आया तो यू ट्यूब के माध्यम से भी कठपुतली नचा रहे हैं। कठपुतली के शो में कठपुतली नचाने के साथ ही बेजान कठपुतलियों को आवाज देना भी अहम काम है। अलग अलग कठपुतलियों को अलग अलग आवाज देना कोई आसान काम नहीं है। इस काम में रामलाल के साथ की दूसरी कलाकार धनवीरा देवी बखूबी करती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

कलाकार का परिचय
देहरादून के ठाकुरपुर निवासी रामलाल भट्ट करीब चालीस साल के कठपुतलियों को लेकर प्रयोग कर रहे हैं। वह स्कूलों में शिक्षाप्रद वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं। उनके पपेट शो में चार तरह की कठपुतलियों का इस्तेमाल होता है। इनमें वह धागेवाली पपेट, रॉड पपेट, मोपेड पपेट और दस्ताना पपेट के जरिये अपना शो करते हैं। यदि किसी को स्कूलों या संस्थानों में पपेट शो या वर्कशाप करानी हो तो वे इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र—9412318880, 7017507160

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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