ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के, जनगीत लिखने वाले उत्तराखंड के साहित्यकार को बल्ली सिंह चीमा को पंजाब सरकार देगी ये सम्मान
पूरे देश भर में आंदोलन के दौरान एक गीत तो सबकी जुबां में जरूर रहता है, वो गीत है ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के। इस गीत को लिखने वाले साधारण किसान बल्ली सिंह चीमा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके गीत आंदोलन में हथियार की तरह इस्तेमाल होते हैं। देश में चल रहे किसान आंदोलन को भी चीमा ने समर्थन दिया और किसान आंदोलन के समर्थन में ‘हम भारत के किसान’ गीत भी लिखा। उन्हें पंजाब सरकार की ओर से शिरोमणि हिंदी साहित्यकार वर्ष 2018 पुरस्कार के लिए चुना गया है। तीन दिसंबर को पंजाब सरकार की ओर से पंजाबी भवन चंडीगढ़ में उनके नाम की घोषणा की गई। चीमा को इस पुरस्कार के लिए चुना जाना उत्तराखंड के लिए भी गर्व की बात है।
पंजाब के भाषा विभाग ने अठारह अलग अलग वर्गों के लिए साहित्य रत्न और शिरोमणि पुरस्कारों का ऐलान किया है। जिनमें से शिरोमणि हिंदी साहित्यकार का पांच लाख रुपये का पुरस्कार बल्ली सिंह चीमा को दिया जाएगा। चीमा को सम्मान दिए जाने की घोषणा के बाद से ही लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लोग उन्हें शुभकामनाएं दे रहे हैं।
जानिए चीमा के बारे में
चीमा का जन्म दो सितंबर 1952 में अमृतसर के चीमा खुर्द गांव में हुआ। कक्षा तीन तक की शिक्षा उन्होंने गांव में ही हासिल की। इसके पश्चात तराई को आबाद करने के उद्देश्य से उनका परिवार उत्तराखंड में उधमसिंह नगर जिले के बाजपुर में आ गया। हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के बाद चीमा उच्च शिक्षा के लिए पुन: पंजाब चले गए। इस दौरान उन्होंने गजल, कविता को पंजाब ही नहीं अन्य राज्यों में भी स्कूली कार्यक्रमों के अंदर प्रस्तुत किया। उच्च शिक्षा के बाद चीमा पुन: बाजपुर आ गए।
यहां भी खेती के साथ उन्होंने लेखन नहीं छोड़ा। वह गरीब, किसान और मजदूर की आवाज बनते चले गए। उन्होंने अपने साहित्य को जन आंदोलन के रूप में लिखना शुरू किया। इसमें उनका गीत-जिसमें ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के, पूरे देश भर में आंदोलन के दौरान लोगों की जुबां पर आज भी रहता है। चाहे यूपी हो या बिहार। या फिर देश का कोई कोना। वहां के आंदोलनकारियों को भी भाषाई दिक्कत नहीं आई, और बल्ली सिंह चीमा का गीत उनकी जुबां तक पहुंच गया।
इसके साथ ही उनके गीत- तय करो किस ओर हो तुम, जिंदगी को अपनी अंगुली पर नचाकर देखिये, सहित कई आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों की जुबां पर रहते हैं। पंजाब के साहित्यकारों की बजाय बल्ली सिंह चीमा का नाम पुरस्कार के लिए तय किया जाना भी उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है।
पांच काव्य संग्रह प्रकाशित
बल्ली सिंह चीमा ने बताया कि उनके अब तक पांच कविता व गजल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें खामोशी के खिलाफ, जमीन से उठती आवाज, तय करो किस ओर हो, हादसा क्या चीज है तथा उजालों को खबर कर दो शामिल हैं। इनमें समाहित कविताएं व गजलें ऐसी हैं जिन्हें पढऩे व सुनने से समाज के लिए कुछ करने का जज्बा आता है।
अब तक मिले ये पुरस्कार
देवभूमि रत्न सम्मान 2004, कुमाऊं गौरव सम्मान 2005, पर्वतीय शिरोमणि सम्मान 2006, कविता कोष सम्मान 2011, राष्ट्रपति पुरस्कार 2012 में मिल चुके हैं। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जटिल चुनौतियों के लिए गंगाशरण पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।