देहरादून में 504 घरों पर बुलडोजर अभियान का विरोध, नगर आयुक्त से मिले विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि, आज आक्रोश रैली
देहरादून में एनजीटी के आदेश पर रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 से बने मकानों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई 27 मई से आरंभ हो चुकी है। इस कार्रवाई का पहले से ही विरोध हो रहा था। विभिन्न दलों और संगठनों की ओर से कार्रवाई आरंभ होने से पहले से ही प्रदर्शन किए जा रहे थे। दो दिन चली कार्रवाई के दौरान पहले दिन चूना भट्टा, दूसरे दिन दीपनगर में भवन तोड़े गए। हालांकि, दूसरे दिन विरोध हुआ तो पुलिस ने लाठियां भी फटकारी। बड़ी मुश्किल से आठ निर्माण को ही तोड़ा गया। अब कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन भी तेज हो गए हैं। आज भी विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने नगर आयुक्त से भेंट की। आज गुरुवार 30 मई को राजनीतिक और सामाजिक संगठनों की ओर से देहरादून में आक्रोश रैली निकाली जाएगी। ये रैली गांधी पार्क से सचिवालय तक होगी। रैली में शामिल होने के लिए लोगों से गुरुवार की सुबह साढ़े दस बजे गांधी पार्क पहुंचने की अपील की जा रही है। इसके लिए पोस्टर भी जारी किए गए हैं। इसमें नफरत नहीं, रोजगार दो। किसी को बेघर मत करो, आदि स्लोगन लिखे हुए हैं। ऐसे पोस्टर सोशल मीडिाय में शेयर किए जा रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गौरतलब है कि देहरादून में रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी है। ये भवन नगर निगम की जमीन के साथ ही मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की जमीन पर हैं। देहरादून में रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद 27 मलिन बस्तियों में बने 504 मकानों को नगर निगम, एसडीडीए और मसूरी नगर पालिका ने नोटिस जारी किए थे। इसके बाद सोमवार 27 मई को मकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई। 504 नोटिस में से मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने 403, देहरादून नगर निगम ने 89 और मसूरी नगर पालिक ने 14 नोटिस भेजे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नगर निगम की सीमा में बने मकानों में 15 लोगों ने ही अपने साल 2016 से पहले के निवास के साक्ष्य दिए हैं। 74 लोग कोई साक्ष्य नहीं दिखा पाए हैं। उन सभी 74 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। अधिकांश लोगों ने नोटिस के बाद अपने अतिक्रमण खुद ही हटा लिए थे। जिन्होंने नहीं हटाए थे, उनको अभियान के तहत आज हटाया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रभावितों की समस्या को लेकर नगर आयुक्त से भेंट
एनजीटी के आदेश पर मलिन बस्तियों को तोड़ने की कार्रवाई के खिलाफ और बस्तियों के नियमितीकरण की मांग को लेकर आज विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने नगर निगम देहरादून पहुंचकर नगर आयुक्त से भेंट की। साथ ही बस्तियों तोड़फोड रोकने की मांग की। इस दौरान नगर आयुक्त को ज्ञापन सौंपा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नगर आयुक्त से कहा गया कि आपके आश्वासन के बावजूद प्रभावित क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर फील्ड कर्मचारियों मापदंडों की अनदेखी के साथ ही मनमानी की जा रही है। प्रतिनिधिमंडल में चेतना आंदोलन से शंकर गोपाल, सीपीआई (एम) से राजेन्द्र पुरोहित, अनन्त आकाश, सीटू से लेखराज, विनोद बडोनी आदि शामिल थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन के प्रमुख बिंदु
-अतिक्रमण अभियान से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों को निर्देशित किया जाए कि किसी भी साक्ष्य या दस्तावेज को वे लें। अगर किसी साक्ष्य से पता चलता है कि मकान वर्ष 2016 से पहले का है तो प्रभावित परिवार का नाम अतिक्रमण की सूची सूची से हटाया जाए।
-किसी को भी बेदखल करने से पहले कानूनी प्रक्रिया को पूरा किया जाए। साक्ष्य पेश करने के लिए कम से कम 30 दिन का समय दिया जाए। हर व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए।
-बेदखल करने से पहले कानून और उच्चतम न्यायालय के फैसलों के अनुसार नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कदम उठाये जाएं।
-कार्यवाही पूरी तरह से निष्पक्ष हो और बेदखली की कार्रवाई बड़ी इमारतों एवं प्रतिष्ठानों से शुरू की जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-जबकि 2016 से पहले बसे लोगों की सम्पति को क़ानूनी सुरक्षा मिली है। लोगों के साक्ष्यों पर मनमानी आपत्तियां की जा रही हैं। मात्र बिजली और पानी के बिलों को ही मान्यता दी जा रही है। कई ऐसे लोग हैं, जो पहले बसे थे, लेकिन बिजली और पानी का कनेक्शन बाद में लगवा पाए हैं। उनके पास राशनकार्ड, गैस, डीएल, एलआईसी, जन्म प्रमाण, टैक्स, आधार, वोटर कार्ड आदि के ऐसे सबूत हैं, जिससे पता चलता है कि उनके भवन 2016 से पहले के हैं। इसके अतिरिक्त कुछ बिजली और पानी के बिलों पर भी नाजायज आपत्ति लगायी जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-अपना साक्ष्य पेश करने के लिऐ प्रभावितों को मात्र दो से छह दिन तक का समय दिया गया है। MDDA की ओर से जारी किया गये नोटिसों में 22 तारीख अंकित है, जबकि हकीकत में 22 तारीख को अधिकांश लोगों के पास यह नोटिस पहुंचा ही नहीं। यहां तक कि कुछ लोगों को 27 और 28 को ही नोटिस मिला है। नगर निगम की ओर से दिए गए नोटिसों के साथ भी ऐसे ही हुआ। उन नोटिसों में साक्ष्य पेश करने के बारे में ज़िक्र ही नहीं है। ये गरीब परिवार हैं, जो दैनिक दिहाड़ी से कमाते हैं। उन्हें इस तरह से कम समय देकर परेशान करना न्यायोचित कदम नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
– बेदखली की प्रक्रिया कौन से क़ानूनी प्रावधान के तहत की जा रही है। इसका ज़िक्र कहीं नहीं है। बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया स्पष्ट है। इसमें सुनवाई के लिए दस दिन दिया जाता है और बेदखली का आदेश होने के बाद तीस दिन स्वयं हटाने के लिए समय दिया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों के अनुसार बिना पुनर्वास का व्यवस्था कर किसी को बेघर करना संविधान के खिलाफ है। इस अभियान के दौरान ऐसा कोई व्यवस्था नहीं दिखाई दे रही है। हरित प्राधिकरण के आदेश के नाम पर सिर्फ और सिर्फ मज़दूर बस्तियों पर कार्यवाही की जा रही है। बिल्डरों, होटलों और सरकारी विभाग द्वारा बनाये गए अतिक्रमण पर कोई भी कार्रवाई नहीं हो रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-इस अभियान को चलाने के लिए एक सप्ताह के अंदर रिस्पना नदी के किनारे बसे हुए बस्तियों का सर्वेक्षण किया गया था। 2016 के मलिन बस्ती अधिनियम के अंतर्गत बनाई गयी नियमावली के तहत नगर निगम की ज़िम्मेदारी थी कि वे नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए भी सर्वेक्षण करते, जो अधिकांश बस्तियों में आठ साल में नहीं हुआ।
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