राष्ट्रपति चुनावः बीजेपी ने चला ऐसा दांव, विपक्षी भी हुए नतमस्तक, बसपा ने दिया द्रौपदी मुर्मू को समर्थन
राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को लेकर जहां विपक्ष कई दिनों से रणनीति बना रहा था और अंत में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को प्रत्याशी बनाया। वहीं, बीजेपी ने बड़ा दांव खेलते हुए द्रोपदी मुर्मू को प्रत्याशी बनाया और कई विपक्षी भी नतमस्तक होते नजर आ रहे हैं।
झारखंड की पूर्व गवर्नर द्रौपदी मुर्मू ने एक दिन पहले यानि कि शुक्रवार को नामांकन पर्चा भी भर दिया। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के साथ ही बीजेपी के बड़े नेता और कई राज्यों के सीएम भी उपस्थित थे। मुर्मू का जीवन बेहद सादगी भरा रहा है और दूसरों की मदद के लिए वो हमेशा तैयार रहती हैं। आलीशान राजभवन में भी वो सिर्फ तीन कमरों का ही इस्तेमाल करती थीं। द्रौपदी मुर्मू के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान कोई विवाद भी सामने नहीं आया।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में हुआ। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडु है। वो आदिवासी जातीय समूह, संथाल से ताल्लुक रखती हैं। द्रौपदी का बचपन गरीबी और मुश्किलों के बीच बीता। ऐसे हालात में द्रौपदी ओडिशा के सिंचाई और बिजली विभाग में 1979 से 1983 तक जूनियर असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुकी हैं। वर्ष 1994 से 1997 तक उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के तौर पर बिना वेतन बच्चों को पढ़ाया।
मायावती ने विपक्षी दलों पर निकाली भड़ास
एनडीए का साथ देने का एलान करते शनिवार को मायावती ने कहा कि वो द्रौपदी मुर्मू का समर्थन इसलिए कर रही हैं, क्योंकि वो आदिवासी समुदाय से आती हैं। इसके साथ-साथ मायावती ने विपक्ष पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर विपक्ष ने बसपा से सलाह नहीं की। मायावती ने कहा कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने बसपा को राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए आयोजित बैठक में नहीं बुलाया। उन्होंने कहा कि बसपा एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका नेतृत्व दलितों के साथ है। हम ऐसी पार्टी नहीं हैं जो बीजेपी या कांग्रेस को फॉलो करती है, या जो उद्योगपतियों से जुड़ी है। हम उत्पीड़ितों के पक्ष में निर्णय लेते हैं। ऐसे में अगर कोई पार्टी ऐसी जातियों या लोगों के वर्ग के पक्ष में निर्णय लेती है, तो हम परिणाम की परवाह किए बिना इन दलों का समर्थन करते हैं।
बसपा प्रमुख ने कहा कि जातिवादी मानसिकता वाले बसपा के नेतृत्व को बदनाम करने की कोशिश करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। सत्ता में बैठे दल बसपा के आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। कांग्रेस या बीजेपी नहीं चाहती कि देश में सही मायने में संविधान लागू हो। बीजेपी ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर आम सहमति का ढोंग किया है और इसलिए विपक्षी दलों और बसपा को दोनों पक्षों से दूर रखा गया है।
मायावती ने कहा कि बंगाल की सीएम ने पहली बैठक के लिए कुछ चुनिंदा पार्टियों को ही बुलाया और शरद पवार ने भी बसपा को चर्चा के लिए नहीं बुलाया। विपक्ष ने केवल राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने की कोशिश का ढोंग किया। विपक्ष बसपा के खिलाफ अपनी जातिवादी मानसिकता के साथ जारी है और इसलिए हम राष्ट्रपति चुनाव पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। हमारी पार्टी ने आदिवासी समुदाय को हमारे आंदोलन के एक प्रमुख हिस्से के रूप में पहचाना है और द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में समर्थन देने का फैसला किया है। इसका बीजेपी या विपक्ष से कोई लेना-देना नहीं है।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना लगभग तय
हालांकि द्रौपदी मुर्मू ने औपचारिकता के तौर पर विपक्षी दल के नेताओं को ये फोन किया है। क्योंकि उन्हें फिलहाल अब किसी अन्य दल के समर्थन की जरूरत नहीं है। ओडिशा से आदिवासी महिला को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी एक तीर से कई निशाने लगाए हैं। क्योंकि ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बीजेडी और आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन के बाद वो बहुमत के आंकड़े को पार करती दिख रही हैं। वहीं विपक्षी दल इस आंकड़े से काफी दूर नजर आ रहे हैं। यानी द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। विपक्ष की तरफ से टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया है, जो 27 जून को नामांकन करेंगे।
विपक्षी दलों के नेताओं से भी संपर्क साध रहीं हैं मुर्मू
एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने ममता बनर्जी के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, झारखंड सीएम हेमंत सोरेन और एनसीपी चीफ शरद पवार से भी बात की है। इसमें उन्होंने इन तमाम बड़े दलों का समर्थन मांगा है। सभी की तरफ से मुर्मू को शुभकामनाएं दी गई हैं। बताया गया है कि नामांकन दाखिल करने से ठीक पहले मुर्मू की तरफ से तमाम नेताओं को फोन किया गया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।