गर्भवती महिलाएं भी हो जाती हैं मधुमेह की शिकार, जानिए कारण, लक्षण, परीक्षण और उपचारः डॉ. रविकांत

बढ़ती उम्र के साथ ही लोग मधुमेह का शिकार हो जाते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। सही खानपान ना होना। शारीरिक श्रम ना करना। या फिर दूसरे कारणों से भी लोग इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। वहीं, गर्भवती महिलाओं में भी ये बीमारी देखने को मिलती है। मधुमेह जनजागरूकता मुहिम के तहत एम्स ऋषिकेश के जनरल मेडिसिन विभागाध्यक्ष एवं जाने माने मधुमेह रोग विशेषज्ञ प्रो. रविकांत इन दिनों मधुमेह के संबंध में हर दिन नई जानकारी लेकर आ रहे हैं। इस बार उन्होंने गर्भवती महिलाओं में मधुमेह की संभावना पर विस्तार से अपनी बात रखी है। साथ ही इसके लक्षण, कारण, उपचार आदि पर चर्चा की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अमेरिका में 18 फीसद गर्भवती महिलाओं को मधुमेह
डॉ. रविकांत ने बताया कि अमेरिकेन मधुमेह संघ के आंकड़ों के अनुसार केवल अमेरिका में गर्भास्था के दौरान 18 फीसदी महिलाएं मधुमेह की शिकार हो जाती हैं। गर्भावस्था के दौरान होने वाले मधुमेह को खास श्रेणी में इसलिए रखा गया है। क्योंकि इस अवस्था में होने वाले मधुमेह से मां और बच्चे दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस कारण रहता है गर्भावस्था में अधिक खतरा
गर्भकालीन मधुमेह या पूर्व मधुमेह, ग्लूकोज असह्यता, या भूखे रहने पर रक्तशर्करा की अधिकता का पहले कभी किया गया निदान। किसी प्रथम दर्जे के संबंधी में टाइप 2 मधुमेह का पारिवारिक इतिहास। स्त्री की उम्र के बढ़ने के साथ उसका जोखिम घटक भी बढ़ता है। विशेषकर 35 वर्ष से अधिक की स्त्रियों के लिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नस्लीय पृष्ठभूमि
अफ्रीकी-अमेरिकी, अफ्रीकी- कैरिबियाई, मूल अमेरिकी, हिस्पैनिक, प्रशांत द्वीप निवासी और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों में उच्चतर जोखिम कारक होते हैं। भारत दक्षिण एशिया का हिस्सा है।
अधिक वजन, मोटापा
कोई पूर्व गर्भाधान, जिसमें बच्चे का जन्मभार ज्यादा रहा हो 4000 ग्राम या 8 पौंड 12.8 औंस। पिछली असफल प्रसूति का इतिहास।
धूम्रपान में जोखिम दोगुना
इसके अतिरिक्त, आंकड़े यह दर्शाते हैं कि धूम्रपानकर्ताओं में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह (जीडीएम) का जोखिम दोगुना होता है। बहुपुटिक अंडाशय रोगसमूह (PCOD) भी एक जोखिम घटक है। हालांकि इससे संबंधित प्रमाण विवादास्पद हैं। जीडीएम (GDM) से ग्रस्त लगभग 40-60% स्त्रियों में कोई प्रत्यक्ष जोखिम घटक नहीं पाया जाता है, इसलिये कई लोग सभी स्त्रियों की जांच की सलाह देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण
गर्भकालीन मधुमेह से ग्रस्त स्त्रियों में कोई लक्षण नहीं होते हैं, लेकिन कुछ स्त्रियों में अधिक प्यास, अधिक पेशाब होना, थकान, मतली और उल्टी, मूत्राशय का संक्रमण, फफूंदी का संक्रमण और धुंधली दृष्टि आदि देखे जा सकते हैं।
गर्भकालीन मधुमेह के कारण
जैसे जैसे गर्भावस्था का समय बढ़ता है अपरा (प्लासेन्टा) से निकलने वाले हार्मोन्स इंसुलिन रेसिस्टेंस बड़ा देते हैं। ऐसी स्थिति में ब्लड शुगर बढ़ने लगता है। आम तौर पर अधिकांश स्त्री में गर्भावस्था के दौरान ये होर्मोस बैलेंस कर लेते हैं, परन्तु कुछ महिलाओं में इम्बलेंस की स्थिति बढ़ने से मधुमेह की स्थिति पैदा हो जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गर्भकालीन मधुमेह के लिए परीक्षण
-गैर-चुनौतीपूर्ण रक्त ग्लूकोज परीक्षण
-निराहार ग्लूकोज परीक्षण
– दो घंटे के आहार के बाद बाद ग्लूकोज परीक्षण
-रैंडम ग्लूकोज परीक्षण
-स्क्रीनिंग ग्लूकोज चौलेंज परीक्षण
-मौखिक ग्लूकोज सह्यता परीक्षण ओजीटीटी (OGTT)। ओजीटीटी (OGTT) रात भर 8 से 14 घंटों तक भूखा रहने के बाद सुबह किया जाना चाहिए। पिछले तीन दिनों में रोगी को अनियंत्रित आहार (कम से कम 150 ग्राम कार्बोहाइड्रेट प्रतिदिन) और असीमित शारीरिक गतिविधि करनी चाहिए। उसे जांच दौरान बैठे रहना चाहिए और धूम्रपान नहीं करना चाहिए । इस परीक्षण में ग्लूकोज युक्त घोल पिलाने के बाद शुरू में और फिर निश्चित अंतरालों पर ग्लूकोज के स्तर को मापा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ओजीटीटी के ये आंकड़े असामान्य
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (ए.डी.ए) 100 ग्राम ग्लूकोज के ओजीटीटी (OGTT) के समय निम्न आंकड़ों को असामान्य मानता है।
-निराहार रक्त ग्लूकोज स्तर ≥95 मिलीग्राम/डेसीलीटर
-एक घंटे बाद रक्त ग्लूकोज स्तर ≥ 180 मिलीग्राम / डेसीलीटर
-दो घंटे बाद रक्त ग्लूकोज स्तर ≥ 155 मिलीग्राम / डेसीलीटर
-तीन घंटे बाद रक्त ग्लूकोज स्तर ≥ 140 मिलीग्राम / डेसीलीटर (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जटिलताएं
जीडीएम (GDM) माता और बच्चे के लिये जोखिम उत्पन्न करती है। बच्चे के लिये जीडीएम (GDM) द्वारा प्रस्तुत दो मुख्य जोखिम हैं।
1. विकास की असमान्यताएं और
2. जन्म के बाद रसायनिक असंतुलन
जीडीएम (GDM) से ग्रस्त माताओं के जन्म दिए हुए शिशुओं को गर्भ की उम्र से बड़े होते है। विराटकायता से प्रसव की समस्याएं बढ़ सकती हैं। गर्भकालीन मधुमेह बच्चे के अंगों के विकास में बाधा पहुंचाती है। नवजात शिशुओं को भी अल्प रक्त ग्लूकोज (Hypoglycemia), पीलिया, उच्च लाल रक्त कण मॉस (Policythemia) और रक्त में कैल्शियम व मैग्नीशियम की कमी होने का अधिक जोखिम होता है तथा जीडीएम (GDM) परिपक्वता में भी बाधा उत्पन्न करती है, जिससे अधूरे फेफड़े परिपक्वन और सरफैक्टेंट की कमी के कारण जन्म के समय रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे करें नियंत्रण
1. नियमित व्यायामः प्रतिदिन नियमित रूप से आधा घंटा व्यायाम करें। प्रतिदिन घूमने जाएं और चिकित्सक की सलाह से हल्के व्यायाम करें।
2. आहारः सुबह का नाश्ता हल्का रखें क्योंकि गर्भावस्था में शुगर को बढ़ाने वाले होर्मोंस शरीर में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
3. दवाएं: जिन महिलाओं को जीडीएम हो गया और आहार एवं व्यायाम से नियंत्रण करना संभव नहीं है, ऐसी महिलाओं को अतिशीघ्र चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाएं शुरू कर देनी चाहिए। गर्भावस्था में सबसे सफल दवाई इंसुलिन है।
4. चिकित्सकीय परामर्शः नियमित चिकित्सकीय परामर्श मां और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। जिस समय प्रसूति रोग विशेषज्ञ रक्त और अन्य जांचों की सलाह दें, उसे जल्द करा लेना चाहिए।
5. डिलीवरी एवं फोलोअपः डिलीवरी अस्पताल में विशेषज्ञ की निगरानी में करानी चाहिए। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसे जटिलताओं के लिए देखना अनिवार्य है। अधिकतर महिलाओं की शुगर डिलीवरी के बाद नियंत्रित हो जाती है। समय समय पर शुगर चेक कर दवाई की मात्रा को नियंत्रित करें।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।