एनसीईआरटी की चुनिंदा किताबों से हटाई संविधान की प्रस्तावना, धर्म निर्पेक्षता की आलोचना की गई शामिल
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2014 में विपक्ष ने संविधान को भी मुद्दा बनाया था। कहा कि यदि बीजेपी सत्ता में आई तो वह संविधान बदल देगी। ये मुद्दा भी काम कर गया और बीजेपी को 241 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि, गठबंधन के सहयोगियों के साथ एनडीए ने सरकार बना ली और नरेंद्र मोदी तीसरी बार लगातार देश के प्रधानमंत्री बने। बीजेपी के बड़े नेता संविधान को बदलने की बात विपक्ष का मनगणंत प्रचार करार देते रहे, लेकिन चुनाव के दौरान बीजेपी के कई नेताओं और सांसदों ने संविधान बदलने के लिए 400 से ज्यादा सीटें लाने की आवश्यकता जताई थी। अब कई दलों की बैशाखियों पर चलने वाली सरकार संविधान को तो बदल नहीं सकती है, लेकिन एनसीईआरटी की कई चुनिंदा पुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कक्षा तीन और छह की पुस्तकों से हटाई प्रस्तावना
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने इस वर्ष जारी कक्षा 3 और 6 की कई पाठ्यपुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया है । नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने बच्चों की किताब से जुड़ा एक बड़ा फैसला लिया है। NCERT ने कक्षा 3 और कक्षा 6 के इस साल की किताबों से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया है। प्रस्तावना को कुछ “मेन एकेडमिक सब्जेक्ट” से भी हटा दिया गया है, जिसमें लैंग्वेज और इंवायरमेंटल स्टडीज (EVS) शामिल हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कक्षा तीन की नई किताबों में भी प्रस्तावना नहीं
हिंदी, अंग्रेजी, गणित और हमारे चारों ओर की दुनिया (जो ईवीएस की जगह लेती है) की कक्षा 3 की नई किताबों में से किसी में भी प्रस्तावना नहीं छपी है। जबकि पुरानी ईवीएस किताब, लुकिंग अराउंड, और हिंदी, रिमझिम 3 में प्रस्तावना थी। कक्षा 6 की पुरानी किताबों में, प्रस्तावना हिंदी की किताब दुर्वा, अंग्रेजी की किताब हनी सकल, साइंस की किताब और तीनों ईवीएस पुस्तकों – हमारे अतीत- I, सामाजिक और राजनीतिक जीवन- I और पृथ्वी हमारा निवास के पहले कुछ पृष्ठों में से एक पर छपी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नई जारी की गई किताबों में, प्रस्तावना केवल साइंस की किताब “क्यूरियोसिटी” और हिंदी की किताब “मल्हार” में दिखाई देती है। तीन अलग-अलग इंवायरमेंटल स्टडीज के बजाय, एनसीईआरटी ने “समाज की खोज: भारत और उससे आगे” नामक एक किताब पब्लिश की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कार्यान्वयन के बाद कक्षा 6 के लिए पाठ्यपुस्तकों के नए प्रकाशित संस्करणों में विज्ञान की पुस्तक क्यूरियोसिटी और हिंदी की पुस्तक मल्हार में प्रस्तावना छपी है। हालाँकि, सामाजिक विज्ञान की पुस्तक एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडिया एंड बियॉन्ड में प्रस्तावना प्रकाशित नहीं की गई है। पुस्तक में नागरिकों के मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है। नई अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक पूर्वी में राष्ट्रगान है, जबकि संस्कृत पाठ्यपुस्तक दीपकम में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनों हैं, लेकिन प्रस्तावना नहीं है। पिछली संस्कृत पुस्तक रुचिरा में भी प्रस्तावना नहीं थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पाठ्यपुस्तक में धर्मनिर्पेक्षता की आलोचना
एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तक में ‘धर्मनिरपेक्षता की आलोचना’ को शामिल कर दिया गया। इसमें कहा गया कि पार्टियां समानता की उपेक्षा करती हैं, अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देती हैं। एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का पालन करने वाले सीबीएसई और राज्य बोर्डों के छात्रों को अब पढ़ाया जाएगा कि भारत में राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति पर नजर रखते हुए अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे अल्पसंख्यक तुष्टिकरण होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यह 2023-24 के शैक्षणिक सत्र तक जो पढ़ाया जाता था, उससे पूरी तरह बदलाव का संकेत है कि अगर छात्र गहनता से सोचें, तो उन्हें पता चलेगा कि इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि वोट बैंक की राजनीति देश में अल्पसंख्यकों के पक्ष में है। एनसीईआरटी ने कहा है कि कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में धर्मनिरपेक्षता पर अध्याय में लाए गए ये प्रमुख संशोधन छात्रों को “भारतीय धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिक आलोचना” से परिचित कराने के लिए आवश्यक थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एनसीईआरटी, जो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। उसने कहा कि इन संशोधनों के बिना, अध्याय “वोट बैंक की राजनीति को सही ठहराने” के रूप में सामने आया। संशोधित पैराग्राफ पुस्तक के पेज 124-125 पर हैं – जो वोट बैंक की राजनीति और धर्मनिरपेक्षता से संबंधित हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पिछले शैक्षणिक सत्र तक एनसीईआरटी की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पुस्तक में धर्मनिरपेक्षता पर अध्याय में कहा गया था कि वोट बैंक की राजनीति को तभी गलत माना जाना चाहिए जब वह किसी भी रूप में अन्याय को जन्म देती हो। अध्याय में कहा गया है कि क्या होगा अगर इन धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं द्वारा बहुसंख्यकों के हितों को कमज़ोर किया जाए? तब एक नया अन्याय पैदा होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक या दो नहीं, बल्कि ऐसे बहुत सारे उदाहरण जिनके बारे में आप दावा कर सकें कि पूरी व्यवस्था अल्पसंख्यकों के पक्ष में झुकी हुई है? अगर आप गहराई से सोचें, तो आपको पता चलेगा कि भारत में ऐसा होने के बहुत कम सबूत हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसमें आगे लिखा गया है कि संक्षेप में, वोट बैंक की राजनीति में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन वोट बैंक की राजनीति का वह रूप गलत है जो अन्याय को जन्म देता है। सिर्फ़ यह तथ्य कि धर्मनिरपेक्ष दल वोट बैंक का इस्तेमाल करते हैं, परेशानी वाली बात नहीं है। सभी दल किसी विशेष समूह के संबंध में ऐसा करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन पंक्तियों में एक बड़ा संशोधन किया गया है, जिसे शैक्षणिक वर्ष 2024-25 से कक्षाओं में पढ़ाया जाएगा। अब इसमें वोट बैंक की राजनीति के मतदान पैटर्न, विकास और “सामाजिक विभाजन” पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित किया गया है। अब, इसमें कहा गया है कि “सिद्धांत रूप में, वोट बैंक की राजनीति में कुछ भी गलत नहीं हो सकता है, लेकिन जब वोट बैंक की राजनीति के कारण चुनावों के दौरान एक सामाजिक समूह किसी विशेष उम्मीदवार या राजनीतिक दल के लिए सामूहिक रूप से मतदान करने के लिए प्रेरित होता है, तो यह चुनावी राजनीति को विकृत कर देता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संशोधित पैराग्राफ में कहा गया है कि यहां, महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि पूरा समूह मतदान के दौरान एक अखंड इकाई के रूप में काम करता है। इकाई के भीतर विविधता के बावजूद, इस तरह की वोट बैंक की राजनीति करने वाला दल या नेता कृत्रिम रूप से यह विश्वास बनाने की कोशिश करता है कि समूह का हित एक है। वास्तव में, ऐसा करके राजनीतिक दल समाज के दीर्घकालिक विकास और शासन की जरूरतों पर अल्पकालिक चुनावी लाभ को प्राथमिकता देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत में यह देखा गया है कि राजनीतिक दल मूल मुद्दों की उपेक्षा करते हुए चुनावी लाभ के लिए भावनात्मक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविक समस्याओं की उपेक्षा होती है। प्रतिस्पर्धी वोट बैंक की राजनीति में विभिन्न समूहों को सीमित संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले प्रतिद्वंद्वी के रूप में चित्रित करके सामाजिक विभाजन को बढ़ाने की क्षमता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत में, वोट बैंक की राजनीति अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से भी जुड़ी हुई है। इसका मतलब यह है कि राजनीतिक दल सभी नागरिकों की समानता के सिद्धांतों की अवहेलना करते हैं और अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देते हैं। संशोधित पैराग्राफ में आगे कहा गया है कि इस तरह की राजनीति अल्पसंख्यक समूह को और अधिक अलगाव और हाशिए पर धकेलती है तथा सामाजिक सुधारों को रोकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में कहा गया है, “चूंकि वोट बैंक की राजनीति अल्पसंख्यक समूह के भीतर विविधता को स्वीकार करने में विफल रही है, इसलिए इन समूहों के भीतर सामाजिक सुधार के मुद्दे उठाना भी मुश्किल साबित हुआ है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एनसीईआरटी ने बदलावों को बताया उचित
एनसीईआरटी ने इन बदलावों को उचित ठहराते हुए कहा कि पुस्तक के पिछले संस्करण में वोट बैंक की राजनीति पर आधारित खंड इस परिघटना को परिभाषित करने में “विफल” रहा। संशोधनों पर एनसीईआरटी के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, “इस खंड का उद्देश्य केवल वोट बैंक की राजनीति को उचित ठहराना है। इसलिए, जोड़ा गया नया पाठ उन बिंदुओं को विस्तृत करता है, जो भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पुनर्लिखित खंड इन विसंगतियों को संबोधित करता है और इस खंड (वोट बैंक की राजनीति) को भारतीय धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिक आलोचना बनाता है। ये बदलाव राज्यों, संवैधानिक निकायों और विशेषज्ञ समूहों से मिले इनपुट के आधार पर एनसीईआरटी पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों को पूरी तरह से संशोधित करने के चल रहे काम से संबंधित नहीं हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सितंबर 2021 में शुरू की गई यह प्रक्रिया अभी भी पूरी नहीं हुई है, क्योंकि पाठ्यपुस्तक विकास समितियों ने अभी तक अपना काम पूरा नहीं किया है। एक बार यह काम पूरा हो जाए, तो किताबों का एक नया सेट बाज़ार में आ जाएगा। फिलहाल, ऐसा लगता है कि नई किताबें 2025-26 के शैक्षणिक सत्र से ही पढ़ाई जाएंगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संविधान की प्रस्तावना हटाने पर दी ये प्रतिक्रिया
नसीईआरटी की किताबों से प्रस्तावना को हटाने के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीईआरटी ने कहा, “पहली बार वे संविधान के विभिन्न पहलुओं- प्रस्तावना, मौलिक कर्तव्यों, मौलिक अधिकारों और राष्ट्रगान को काफी महत्व दे रहे हैं। ऐसे में संविधान के सभी पहलुओं को विभिन्न चरणों की विभिन्न किताबों में छापा जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एनसीईआरटी में पाठ्यक्रम अध्ययन एवं विकास विभाग की प्रमुख प्रोफेसर रंजना अरोड़ा ने कहा कि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से प्रस्तावना को हटाने के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है। उन्होंने कहा, “पहली बार एनसीईआरटी भारतीय संविधान के विभिन्न पहलुओं – प्रस्तावना, मौलिक कर्तव्य, मौलिक अधिकार और राष्ट्रगान को बहुत महत्व दे रहा है। इन सभी को विभिन्न चरणों की विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में रखा जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रोफेसर अरोड़ा ने कहा, “यह समझ कि केवल प्रस्तावना ही संविधान और संवैधानिक मूल्यों को दर्शाती है, त्रुटिपूर्ण और संकीर्ण है। बच्चों को संविधान के मूल कर्तव्यों, मूल अधिकारों और राष्ट्रगान के साथ-साथ प्रस्तावना से संवैधानिक मूल्य क्यों नहीं सीखने चाहिए? हम एनईपी 2020 के दृष्टिकोण के अनुसार बच्चों के समग्र विकास के लिए इन सभी को समान महत्व देते हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।