शिक्षिका उषा सागर की कविता- बरखा

बरखा (वर्षा)
आई तुम तो फैली
चारों ओर हरियाली
पड़ी बौछार पहली तो
जन जीवन में भरी खुशहाली
आते ही यहां तुम्हारे
पहने धरती हरियाली साड़ी
झरनों नालों से सज उठी
देखो चारों ओर सभी पहाड़ी
धीरे धीरे तुमने रूप
प्रचंड अपना दिखलाया
हो रहा है ये क्या
मानव शीघ्र समझ न पाया
फटा कहीं पर बादल
कहीं बाढ़ ने कहर बरपाया
हुई लबालब धरती सारी
जनमानस है घबराया
नहीं तुम्हारे आने से
सभी अकुलाते हैं
देख तुम्हारा रूप भयानक
प्राणी सब घबराते हैं
ज़ख्मी होती धरती सारी
कहीं कोई घर उजड़ता है
आने, न आने से तुम्हारे
दुःख बहुत सहना पड़ता है
क्यों तुम इतने अश्रु बहाकर
धरती को भर देती हो
होती जन-धन की हानि
घर के चिराग बुझाती हो
गर्मी से राहत देती तुम
शीतल काया करती हो
फिर क्यों अधिक बरस कर
तुम स्वयं को जाया करती हो।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।