शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- नहीं घमंड मन में

मुझे क्या घमंड होगा मन में,
मैं तो मिट्टी का एक छोटा कण हूं।
जनम इसी में मरण इसी में,
लिया जनम यहां पर कुछ क्षण हूं।
समा जाना एक दिन इस माटी में,
असली आशियाना इसे मैं कहता हूं।
क्यों लोभ, लालच घमंड यहां,
सलाह इन्हे भक्षण करने की देता हूं।।
क्या करूं अभिमान मन में लेकर,
पूरी तरह मिट्टी में लिपटा हुआ हूं।
लकड़ी से बनी है जो ढेर राख की,
उसी के अंदर तो मैं सिमटा हुआ हूं।
क्यों करूं राग द्वेष ईर्ष्या मन में,
कुछ पलों के लिए तो आया हूं।
मिट जाएगी ये देह ये, काया,
मैं तो यहां कुछ पल का साया हूं।।
खुशी खुशी मैं इस संसार में रहना चाहूं,
मिट्टी धूल कण में जन्मा हूं।
क्या तेरा क्या मेरा इस धरा में,
सो जाना इसी में से तो पनपा हूं।
बस हृदय में एक कल्पित वेदना,
इसी में मरण की कामना करता हूं
त्याग दो अब तुम क्रोधित जीवन ,
बस स्नेह बहा दो,यही मैं कहता हूं।।
मुझे””””””””””””””””””””””मन में।
मैं””””””””””””””””””””””””कण हूं।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना????