मकर संक्रांति पर्व पर कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता-उत्तरायण में पुन: अभिनंदन

उत्तरायण में पुन: अभिनंदन है।
बाल सूर्य उदित मकर राशि में,
शैल शिखर सब अनुरंजित हैं।
सुरकुट पर्वत तिरछी किरणों से,
स्वर्णमुकुट धारित स्वागत को है।
मकर संक्रांति के पावन पर्व पर,
खिचड़ी का उपक्रम आयोजित है।
नन्हें जीव जन्तु वनस्पतियों का,
उत्तरायण में पुन: अभिनंदन है।
मेरे घर गांव के आसपास अब ,
नित निशांत सुखद समीर बहेगी।
मधुर ताप से प्रिय बाल सूर्य के,
नव जीवन भर दशों दिशा हंसेंगी।
चन्द दिनों में नम क्षेत्र ढ़लान पर,
चिर नैसर्गिक फ्यौंली पुष्प खिलेंगे।
आल्हादित हो जाएगा विकल मन,
अब जकड़न कटु शीत लहर मिटेगी।
आ जाओ प्रिय मधुकर बगिया में,
कवि निशांत स्वागत आस लगाए है।
बर्फ पिघल कर बन रही हिमनद,
सरिताएं भी स्वच्छ आकर्षक स्थिर हैं।
कोरोना दैत्य भी कहीं आसपास है,
रुपसि स्वर पंख अभिमान न करना,
मकर संक्रांति पंचमी का महा पर्व पर,
घर पर ही सद्य स्नान प्रिय कर आना।
कवि का परिचय
कवि एवं साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी, निशांत सेवानिवृत शिक्षक हैं। वह नगर पालिका परिषद चंबा के स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर हैं। वर्तमान में वह सुमन कॉलोनी चंबा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में रहते हैं। वह वर्तमान के ज्वलंत विषयों पर कविता, लेख आदि के जरिये लोगों को जागरूक करते रहते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।