Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 7, 2024

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल- सत-करम

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल- सत-करम।

सत-करम

जिंदगी भर करम करि, अब कुछ धरम करिले.
तनि कटिगे यो जीवन, अब ज्यू भरम करिले..

इत्गा त तू-जांड़िगे ह्वलि, जीवन पुरखों अंस च,
अपड़ि करणि-कथणि फरि, कुछ शरम करिले..

पेट भ्वरै त पंछि-बड़चर, सब अफ-अफु करदीं,
अपड़ि छौं म रंदीं, ऊं सर क्वी-खटकरम करिले..

अलग च तेरी पछ्याण, ज्ञानि ह्वे-अज्ञानी न बण,
ढोल़ सी कसिगे-सरैल, भक्ति से तू नरम करिले..

मान की सम्मान की-यीं लड़ैं, कब-तक लड़िलि,
प्रभु जनै ध्यान धर, क्वी भलु शुभकरम करिले..

जुग-जुग बटि-अज्यूं तलक, रामजी कु नाम चल,
ऊंकु बतयूं- बटु पकड़, क्वी- भलु करम करिले..

‘दीन’ ! माया बंधनों तोड़ि , प्रभु से ज्यू जोड़िले,
य जिंदगी सुख्म कटेलि, क्वी सत्-करम करिले..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page