Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 16, 2025

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल- माँ कालिंका

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल- माँ कालिंका।

माँ कालिंका

मेरि बड्यर्यूं कि कालिंका माँ, दैंणी ह्वेकि जै.
आस लेकि- औंला हम, माँ- खुसी देकि जै..

तेरा थानम अयां छवां, माँ भरि-दीसौं झोऴी.
मेरा गढ़-कुमौ कि कालिंका तु, कष्ट लेकि जै..

तेरि जातरा-आयूं माँ मिं, टक्- धाक धैरीक,
दीसा- धयड़्यूं- आस माँ तु, पूरि- कैकि जै..

मीं अजांण- अपछ्यांण, माँ भूलु- भटकु छूं,
तेरि खुट्यूंम- प्वड़्यूं छूं मिं, बटु दिखैकि जै..

ग्वाऴु – बाऴु तेरु माँ मि, मेरि – धवड़ि सूंण,
मेरा जिया कि संका- दुविधा, माँ मिटैकि जै..

भूख- तीस हरच मेरि, माँ तेरि- छाया बगैर,
मुंडम मेरा- हाथ धैर, सदनि- ज्यूम बैठि जै..

‘दीन’ बटु रिबड़ी-मीं बिछड़ि, कख पौंछिग्यूं,
भलु बटु – भलि समज, माँ- मीं- बतैकि जै..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *