शिक्षक एवं कवि रामचंद्र नौटियाल की कविता-मन के सैलाब
मन के सैलाब
ऐ मेरे मन के सैलाब!
तू निकल न जाना,
हर समय कहीं गीत बन न जाना,
ऐ मेरे मन के सैलाब !
अकेले में परेशान न होना,
आंसुओं के सैलाब तू कहीं न खोना,
दुनिया के मेले मे न खोमा तू
इस दुनिया में जहां करो मलाई
वहाँ निकलती है बुराई
ऐ मेरे मन के सैलाब !
पत्थर को मनाना लू ,
भगवान समझकर,
पर इन्सान को न मनाना,
वो कहीं पत्थर न बन जाये।
ऐ मेरे मन के सैलाब,
किसी को ज्यादा सीख न देना
तू कहीं शिक्षा के राजनीतिकरण
अहम बहम न समझ जाये
ऐ मेरे मन के सैलाब !
कही डगर पर टूट न जाना तू
जिन्दगी सें रोडे न आ जाये
तेरे मन को कहीं से न भरमाये
कहीं किसी से रूठ न जाना तू
ऐ मेरे मन के सैलाब!
कवि का परिचय
रामचन्द्र नौटियाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गड़थ विकासखंड चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी में भाषा के अध्यापक हैं। वह गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। वह कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां देते रहते हैं।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।