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March 12, 2025

युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-जब भी लगता है मैं जान गई हूँ तुम्हें पूर्ण

जब भी लगता है मैं जान गई हूँ तुम्हें पूर्ण
तब तब घट जाता है कुछ ऐसा
जो मेरा ये भम्र तोड़ने में क्षणिक भी समय नही लेता।
एक पल लगता है मैं जानती हूं
तुम्हारा भूत वर्तमान और एक हद तक शायद भविष्य भी
मगर दूसरे क्षण होता है कुछ ऐसा
तुम दिखते हो उस भीड़ का एक हिस्सा जो मेरे लिए अनजान है।
कभी लगता है मेरा होना जरूरी है
तुम्हारी ज़िन्दगी के हर पन्ने में
और कभी लगता है
मैं रफ कागज़ से ज्यादा और कुछ मायने नही रखती।
और इन सब मे गुनाहगार देखती हूँ मैं खुद को
उस उम्मीद को जो हर बार अपनी सीमा लाँघती गई।
जो ये भूल गई कि……
आखिर कैसे जान सकते हैं
हम किसी के बारे में सम्पूर्ण
कैसे हो सकते है किसी के लिए सार्थक।
सबकुछ तो हम जान ही नही सकते किसी के बारे मे।
और मायने जीवनपर्यंत सदैव एक जैसे भी नही हो सकते।
परिवर्तन होना अनिवार्य है
तो स्वीकार्य हैं मायनों में भी परिवर्तन ।
प्रकृति में परिवर्तन स्वीकार है
तो स्वीकार्य है इंसानो में भी परिवर्तन।
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून से बीए करने के बाद अब आगे की पढ़ाई की तैयारी।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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