युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- मन बहुत बैचैन है
मन बहुत बैचैन है
कुछ ऐसा ढूँढ रहा है
जो खो गया है
खोया क्या है ये मालूम नही
जीवन के उतार चढ़ाव से तो वाकिफ़ है
अनन्त सी दिशा में जीवन की ये परीक्षा
समाप्त नहीं होती,
कहने को अब हर परेशानी का हल है
मगर मंज़िल अभी भी मालूम नही (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
कभी दरिया किनारे आ जाते हैं
कभी बीच समुद्र की लहरों में सिमट जाते हैं
भटकते जीवन को सम्भाल सके
ऐसा ठहराव मालूम ही नहीं
एकाग्रता, संयम, संबल की असीम पूँजी समेटी है
अब तर्क वितर्क के साथी अनेक हैं,
साझेदार ख़ामोशी का मालूम ही नहीं
सब्र की अनंत सीमा थामे क़दम बड़ रहे
मगर हिम्मत बांधे चले कोई
ऐसा हमदर्द मालूम ही नहीं (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
दुनिया मतलबी है अनजान कोई नहीं
जज्बातों को समझने की इंसानियत भी नहीं
फ़िर भी एकांत में बसर करने का सलीक़ा मालूम नहीं
उदास चेहरा उतरी सी रौनक
असमंजस सी हालत
कमी किसी की ये दिल ढूँढ रहा है,
मगर वो कमी क्या है ये मालूम नही
कहने को तो फ़ुरसत नही है,
व्यस्तता भरा जीवन है,
फ़िर भी अन्तर्मन सवाल कोई कर रहा है
मगर वो सवाल क्या है ये मालूम नही…
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
पता – बिरिया – मझौला, खटीमा, उधम सिंह नगर उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।