शिक्षिका उषा सागर की कविता- एक कोशिश तो बाकी है
एक कोशिश तो बाकी है
टूटे हैं पंख अभी तो क्या,
हौसलों की उड़ान बाकी है।
क्षितिज तक उड़ान न सही,
खुला आसमान तो बाकी है।।
बैठे हैं समन्दर किनारे,
लहरों का आना बाकी है।
मोतियों का अम्बार है गहरे पानी में,
डुबकी लगाना बाकी है।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुट्ठी न खाली रहे हर बार,
गहरे में उतरना बाकी है।
सीप तो बहुत मिलते रहे,
मोतियों को पाना बाकी है।।
किनारों की बात क्या करें,
भंवर में जाना बाकी है।
मयखाने तो बहुत हैं साकी,
तेरा आना अभी बाकी है।।
होने को है सबेरा,
अंधकार मिटना बाकी है।
चांद छिपने को बैठा है,
सूरज का उगना बाकी है।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
बचपन की यादों में थे मसरूफ,
अल्हड़ जवानी का आना बाकी है।
जवानी भी आकर यों चली गई,
कि अब बुढ़ापे का आना बाकी है।।
थककर चूर हो गए हैं हम,
टूटकर बिखर जाना बाकी है।
हौसले ने हों धूमिल कभी भी,
क्योंकि एक कोशिश तो बाकी है।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।