शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-वीरांगना धना
वीरांगना धना
वाह! क्या गजब,बात है सबकी जुबानी ।
कुमाऊं की तीलू , धना की है कहानी।।
अस्कोट रियासत की, ये बात है पुरानी।
नार सिह थे राजा, बीर बलिदानी।।
सपने मन में, बहुत उनके संजोए।
सारे कुमाऊं पर, जीत जो थी पानी।।
बताई थी इच्छा, रानी धना को।
खत्म करनी है, काली चंद की निशानी।।
बिगुल बज चुका था,अब डोटिगढ़ में।
काली चंद ने जब, यह बात थी जानी।।
काली चंद भी तैयार, खड़ा था युद्ध करने को।
उसे भी तो नार सिह की, थी कहानी मिटानी।।
लंबे वर्षों तक, लड़ता रहा युद्ध नार सिह।
थक चुकी थी, अब उसकी जवानी।।
धोखे से प्रहार किया, हाथों पर काली ने जब।
मिटा दी थी, नार सिह के हाथों की कहानी।।
तड़प तड़प कर, मर चुका था नार सिह।
धना के सिन्दूर की थी, ख़तम कहानी।।
तिलमिला उठी थी, रानी धना अब।
बदले की थी, उसने मन में है ठानी।।
बदले के खातिर, पुरुष वेश में रानी।
डोटी युद्ध करने, पहुंच गई बलिदानी।।
भीषण युद्ध छिड़ गया, काली के संग।
रानी बन गई थी, काली भवानी।।
शिर से पगड़ी, फिसली जब अचानक।
काली चंद ने, रानी धना जो पहचानी।।
बंदी बना लिया गया, रानी को अब।
शर्त, काली चंद की रानी ने मानी।।
करना चाहता था, विवाह रानी संग काली।
रानी को थी, अपने सतीत्व की लाज बचानी।।
तैयार हो गई, विवाह करने को रानी।
काली चंद की, ख़तम करनी थी जवानी।।
चल पड़ा बेखबर, संग रानी के वो।
उसने बात, रानी के मन की न जानी।।
अपनी आबरू, बचाने के खातिर।
काली को संग, नदी में ले गई थी रानी।।
दुर्गा बनकर तुंबियो में छेद कर गई रानी।
तुंबियो में, भरने लगा था अब पानी।।
डूबने लगा अब नदी की धारा में काली चंद।
ख़तम होने, लगी थी उसकी कहानी।।
कटार से शिर, काट डाला रानी ने अब।
मिटा दी थी, काली चंद की जवानी।।
अपने सतीत्व, की रक्षा की खातिर।
जलकर चिता में, सती हो गई थी रानी।।
याद रखेगी, कुमाऊं गढ़ भूमि सदा तुझको।
काली चंद के, आगे तूने हार नहीं मानी।।
मरकर सदा, के लिए सो गई अब रानी।
मरकर भी है, आज तेरी अमर कहानी।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।