नए साल के उपलक्ष्य में प्रोफेसर डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- लम्हा-लम्हा

धीरे -धीरे हम तारीख़ों में
यूँ ही व्यतीत हो रहे हैं।
लम्हा-लम्हा हम देखो यूँ
हर पल अतीत हो रहे हैं
कोई नहीं है ज़ायका
ऐसे शिकवे शिकायतों में
भुलाकर राग – द्वेष लगा
लो प्रेम से गले ज़िन्दगी
मुठ्ठी से रेत जैसी फिसल
रही हमारे हाथों जिंदगी
गीता के श्लोक हों या
कुरानों की हों आयतें
हर दफ़ा क्यूं बदल रही
अपनी मंजिलें – मक्सद?
और ज़ीने की रिवायतें ये ज़िन्दगी! (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
भूलता नहीं मगर ये दिल
ज़िन्दगी की नादानियाँ ।
मेरे साथ जाने – अनजाने
मेरी हक़ीक़त में, मेरे फसाने में,
मुझसे रूठने व मुझे रिझाने में ,
मेरे जज़्बातों और मेरे बयानों में
मृग मरीचिका से हसीन चिलकते
इन दूभर से रेगिस्तानों में
फिसल रही लम्हा -लम्हा
ज़िन्दगी (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिन – महीने -वर्षों के इन गुज़रते
लुभावने से मखमली पायदानों में ।
ले जाती कई हसीन पल
लुभावनी यादें ,
दे जाती कई कचोटती सिहरन भरी आहें ।
समय की माला से आज
एक और मोती झड़ने को है।
व्यतीत हुए वर्षों में
एक और वर्ष जुड़ने को है।
धीरे -धीरे हम तारीख़ों में
यूँ ही व्यतीत हो रहे हैं ।
“लम्हा-लम्हा हम देखो यूँ
हर पल अतीत हो रहे हैं।
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।