डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- प्यासा तेरे द्वार पर
प्यासा तेरे द्वार पर
अपनी आन बान
और शान पर नित,
सागर क्यूं इठलाए।
प्यासा तेरे द्वार पर,
प्यासा ही रह जाए॥
नदियाँ है छोटी भली
जल भी थोड़ा होए।
प्यास बुझाए जगत की,
नित तुझको भरती जाए। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
नदियाँ मीठी रस भरी
मीठा जल लेकर नित
तुमको भरनें को आए।
पर तुमसे वो जब मिले
बस खारी ही ह्वै जाए
अपनी आन -बान
और शान पर नित,
सागर क्यूं इठलाए।
प्यासा तेरे द्वार पर,
प्यासा ही रह जाए॥
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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