डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- मेरे दिल में बस तू ही तू
मेरे दिल में बस तू ही तू
चुपचाप बसा होता है।
जैसे सबकी आँखों से
छिपा कंजूस का धन होता है।
खुशियों को नज़र सी लग जाती है।
जब भी कोई ज़ख़्म हरा होता है॥
इक होने से तेरे, मेरे होने का सबब होता है ।
तुम्हें छोड़के के कब मेरा कोई दूसरा रब होता है॥ (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
चाँद घट – घट के इक दिन छुपा होता है।
पर चांदनी को कब इसका गिला होता है॥
मैं तेरी थी, तेरी हूँ, तेरी ही रहूंगी
मेरे होंठों पर ये ही एक तराना होता है।
फिर क्यूं मेरे प्यार को यूं
हर रोज आज़माना होता है॥
मेरे दिल में बस तू ही तू
चुपचाप बसा होता है।
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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एक अबोध बालक
आ. डॉ पुष्पा जी की रचना मनमोहक प्रस्तुति करण बधाई हो
युवा कवयित्री, अंजली चंद की प्रस्तुति अनसुलझे मिजाज़ में, वाह क्या बात है
बहुत खूबसूरत।