डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- अक्षर साधकों की कल्पना
अक्षर साधकों की कल्पना ,
अक्सर धारण कर
अंगवस्त्र शब्दों का।
ओढ़ भावों की चुनरियाँ,
भर लेती उपमान गगरिया,
छलकाती फिरती बिम्बों को,
चाँद, सूरज और सितारों के साथ अम्बर समा जाते,
अक्षर साधकों की कल्पना,
अक्सर धारण कर
अंगवस्त्र शब्दों का।
ओढ़ भावों की चुनरियाँ,
भर लेती उपमान गगरिया,
छलकाती फिरती बिम्बों को
न जाने कितने सतरंगी इन्द्रधनुष कैद हो जाते हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
कितने अपनी मस्ती में दौड़ते ‘मृगछौने ‘
कसमसाती नन्हीं कलियों के फूल बनने की प्रतीक्षा करते ‘अलि ‘
और पांखुरियों से रंग चुराने को,
अलि की स्पर्धा करती ना जाने कितनी ‘तितलियाँ ‘
छलक जाती है तब गगरिया बिम्बों की
प्रकृति का हर पल, नियति की हर जीत-हार।
पर्वत ऊँचे, नदियाँ मीठी और सागर खारे।
और तब महान अक्षर साधक की ,
अक्षर ब्रह्म साधना पूर्णता को प्राप्त हो जाती है अविराम !
सहृदयों के हृदय में उतर पाती है विश्राम .. . .
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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