जमा पूँजी के फ्री ऑफर का खेल, जनता को बना लो जितना बेवकूफः मनीष गर्ग
आज हमारे सामने कईं सारे फ्री के ऑफर हैं। जैसे बिजली, राशन, लैपटॉप, टैब और किसानों तथा महिलाओं को हर महीने खर्चा। स्वास्थ्य की सेवाएं फ्री आदि - आदि। उसके साथ बेरोजगारों को रोजगार की उम्मीदें फ्री।
आज हमारे सामने कईं सारे फ्री के ऑफर हैं। जैसे बिजली, राशन, लैपटॉप, टैब और किसानों तथा महिलाओं को हर महीने खर्चा। स्वास्थ्य की सेवाएं फ्री आदि – आदि। उसके साथ बेरोजगारों को रोजगार की उम्मीदें फ्री। असल में हम हिन्दुस्तानियों को इन सब की आदत नहीं है। इसलिए ये कम समय का ऑफर ही लगता है। ऐसा नहीं है कि इस ऑफर का लाभांश कोई नहीं लेता। कुछ लोग इसका लाभांश कम समय में ले भी लेते हैं, लेकिन प्रत्येक जरूरत मंद को ये लाभ नहीं मिल पाता। जिसको मिल जाता हैं वो अगले ऑफर के लिए इंतजार में रहता है।आज भी सड़कों पर बहुत सारे जरुरत मंद मिल जायेंगे, जिन्हे पता ही नहीं की ये ऑफर कंहा से निकलते हैं और कहां कोनसे बिल में घुस जाते हैं। इन्हे पता ही नहीं होता की ऑफर को पाने के लिए वोटर कार्ड अत्यंत जरूरी है। फिर आपके पास कुछ और हो या न हो। हम विदेशी तर्ज का जिक्र तो करते हैं, लेकिन वो कैसे हम हो सकते हैं, इसकी जानकारी का पूरा आभाव है। जिसके पास बहुत कुछ है वो भी और जिसके पास कुछ भी नहीं है वो भी व्यवस्था को लेकर राग अलापता है।
जानकारी के आभाव का फायदा हमें ऑफर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और इसी तरह के ऑफर हमारे ऊपर एहसान की तरह थोप दिए जाते हैं। हमें लगता है ये हमें फ्री में मिल रहा है, जबकि ये हमारा अधिकार है। हमारे अधिकारों में ये एहसान का रोड़ा हमारी नीतियों, नियमों और कानून की वजह से आता है। हर वो व्यक्ति या कहें की हिंदुस्तान का हर वो नागरिक, जिसे टैक्स का मतलब ही नहीं पता वो दो रूपये का बिस्कुट का पैकेट खरीद कर उस पर भी टैक्स देता है। जो सरकारी खजाने में जाता है। जो लोग असल में टैक्स देने के लिए योग्य हैं उनकी संख्या बहुत ही कम है। जो टैक्स जमा करते हैं, शायद नियम – कानून ही ऐसे हैं कि कोई भी टैक्स की चोरी आसानी से कर जाता है।
यदि ईमानदारी से सख्त नियमों के अनुसार टैक्स जमा करने की परिक्रिया हो तो ये जो फ्री के ऑफर न होकर हमारे लिए आवश्यक रूप से लागु हों। शायद ही इन नियमों और कानूनों में कभी परिवर्तन हो। फ्री के ऑफर की घोषणा करने वाले सत्ता में आना चाहते हैं और जो सत्ता में होते हैं वो बने रहना चाहते हैं। चुनावों के परिणाम आने के बाद अपनी उपलब्धियां ऐसे गिनाते हैं, जैसे किसी को जीवन दान किया हो। फिर ऑफर खत्म। माफ कीजियेगा, लेकिन इस तरह से योजना चलाने पर शायद देश अगले पांच से 10 सालों में इतना मजबूर और कर्ज़दार हो जाएगा कि पता नहीं क्या हाल होगा। हम पता नहीं कितने साल पीछे चले जायेंगे।
योजना ऐसी है कि आम आदमी की पर्चेसिंग पावर इतनी बढ़ा दी है कि जितनी उसकी आय नहीं है, उससे ज्यादा वो ऋण ले सकता है। इसमे ब्याज दर इतनी होती है की वो जिस चीज के लिए ऋण लेता हैवो तो गई और साथ में इज्जत भी। जो अपना है वो भी गया। यदि आपने अपनी बचत किसी सावधि जमा योजना में लगा दी तो सालों बीत जायेंगे। आपको ब्याज न्यूनतम ही मिलेगा। मतलब आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया।
जब मुलभुत सुविधा देने के लिए योजनाओं को आरक्षित कर दिया जाता है और बिना किसी जाँच पड़ताल के किसी ऐसे व्यक्ति को दे दिया जाता है, जिसकी उसको कोई ज़रुरत नहीं होती। फिर वो रह जाता है, जिसकी उसको ज़रुरत होती है। यदि आपको इतनी ही चिंता है तो आपने सरकार में रहते हुए पहले कोई फ्री ऑफर क्यों नहीं दिया। सरकार में आना चाहते हैं तो सत्य क्यों नहीं उजागर करते। क्योंकि चोर – चोर मौसेरे भाई। आपको समाज की इतनी ही चिंता है तो बिना सरकार में आये क्यों नहीं कोई फ्री ऑफर वितरण किया ?
असल में होड़ फ्री ऑफर की नहीं है। ये इस बात की है कि कौन कितने लोगो को कितनी जल्दी बेवकूफ बना सकता है। क्योंकि चुनाव सर पर हैं जो जितना ज्यादा बेवकूफ बनाएगा उतने ही वोट उसको पड़ेंगे। खैर हम तो तैयार हैं वोट डालने के लिए। अगली सरकार किसकी होगी, भगवान ही मालिक नहीं है। हम मालिक हैं, कोई भी आए उसको ये सन्देश ज़रूर जाना चाहिए कि वो हम पर इस तरह की योजनाए न थोपे। जिससे पूरा प्रदेश और देश बर्बाद होता जा रहा ह। “मुखिया भी चुप हैं” ?
लेखक का परिचय
मनीष गर्ग
समाज सेवक, देहरादून, उत्तराखंड।
लेखक, निजी शिक्षण संस्थान में कार्यरत हैं। संपर्क 8006220008





