पौधे भी करते हैं आपस में बात, उन्हें भी महसूस होता है दर्द, जानिए वैज्ञानिक तथ्य
जब मनुख्य आपस में बात करता है। जानवर भी ये समझ जाते हो कि आप क्या कह रहे हो। इसमें आपने घर में पालतू कुत्ते को देखा होगा कि कैसे वह आपके कहे अनुसार आचरण करता है। फिर सवाल उठता है कि क्या पौधे भी एक दूसरे से बात कर पाते हैं। वैज्ञानिक बहुत पहले से ही यह बात जानते हैं कि पौधे खतरा महसूस होने पर आसपास के पौधों को बता देते हैं। पौधों को विपत्ति के समय दर्द भी महसूस होता है। फिर भी वैज्ञानिक यह अभी तक समझ नहीं सके थे कि पौधे यह सब कर कैसे लेते हैं। जापान के वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में इस रहस्य से पर्दा उठाया है। हम यहां इसी तरह के अध्ययनों को आधार बनाकर आपको समझाने का प्रयोग करेंगे कि पौधे क्या आपस में बात कर सकते हैं। या फिर आवाज का उन पर कैसा असर पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक तर्क
एक तर्क दिया गया कि पेड़ पौधों पर आवाज का असर पड़ता है। हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि वे आवाज सुन सकते हैं, क्योंकि उनमें सुनने के लिए कोई अंग नहीं हैं। फिर भी आवाज या किसी भी तरह की ध्वनि तरंगों से बनती है और इन तरंगों को महसूस किया जा सकता है, इसे पेड़ पौधे और जानवर भी महसूस करते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान में साबित किया है कि पेड़ पौधों को मधुर संगीत शास्त्रीय संगीत सुनाने पर उनका विकास वृद्धि अधिक होती है।(खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खतरे को भांप जाते हैं पौधे
नेचर कम्यूनिकेशन्स में प्रकाशित अध्ययन में साइतामा यूनिवर्सिटी के मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट यूरी अरातानी और ताकुया युमूरा ने दर्शाया है कि कैसे पौधे खतरा भांपने पर बर्ताव करते हैं। शोधकर्ताओं ने अरबिडोप्सिस थैलियाना नाम के खरपतवार और टमाटर के पत्तियों पर कीड़े छोड़े। इसके बाद उन्होंने आसपास के पौधों पर कुछ पदार्थों का लगातार छिड़काव किया। इसके अलावा अरिडोप्सिस पौधा जेनिटिकली इंजीनियर्ड पौधा है और इसकी कोशिकाओं में बायोसेंसर होते हैं, जो कैल्शियम आयन के मिलने से हरे रंग से चमकते हैं। जब शोधकर्ताओं ने इस पूरी प्रयोग का वीडियो बनाया तो उन्होंने पाया जिन पौधों को नुकसान नहीं हुआ था, उनकी पत्तियो में कैल्शियम के संकेत दिखाई दे रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पौधों की प्रतिक्रिया
चमकीले सेंसर के जरिए उन्होंने यह पहचाना कि बहुत प्रकार की कोशिकाएं खतरे के संकेत पर प्रतिक्रिया कर रही हैं। वे सबसे पहले पत्तियों के सिरे को खुला हुआ हिस्सा जिसे स्टोमैटा कहते हैं से बंद करने लगते हैं। इस तरह से उन्होंने पता लगाया कि कैसे, कब और कहां पौधे हवा में पैदा हुए चेतावनी संकेतों पर प्रतिक्रिया करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खतरे से निपटने के लिए करते हैं ये काम
गौर करने वाली बात यह है कि पौधे इस तरह की चेतावनी पा कर केवल सुरक्षा के लिए अपने कुछ काम ही बंद नहीं करते हैं या फिर सो नहीं जाते हैं, बल्कि कुछ पौधे तो अपना रंग और आकार तक बदल सकते हैं। वहीं कुछ पौधे तो ऐसे पदार्थ निकालने लगते हैं तो उन जानवरों के आकर्षित करते हैं जो पौधों पर हमला करने वाले कीड़ों को खाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यह खास तरह का संचार नेटवर्क इंसानों की पकड़ में अब तक नहीं आ रहा था, लेकिन यह आसापास के पौधों में आने वाले खतरे के बारे में तुरंत सूचना देने का काम करता है। पिछले साल ही एक अध्ययन में इजरायली वैज्ञानिकों ने यह साबित किया था कि पौधे आवाज को भी सुन पाते हैं या महसूस कर पाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पौधों को भी होता है दर्द
अब सवाल उठता है कि क्या पौधों को भी मुसीबत में दर्द महसूस होता है। पौधों में जान होती है। वो बढ़ते हैं, फलते-फूलते हैं। फिर एक दिन सूखकर मर जाते हैं। विज्ञान कहता है कि पौधे हमारी छुअन को महसूस करते हैं, उन्हें दर्द होता है। हालांकि, वे इंसान की तरह इजहार नहीं कर पाते। रोकर और चीख-चिल्लाकर। एक रिसर्च में अब ये बात साबित हो गई है कि पौधे भी दुःख, तकलीफ में रोते हैं। बस हमारे कान अभी तक उनका रोना सुन नहीं पाए थे, जो अब मशीनों ने सुन लिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
की गई है रिसर्च
30 मार्च, 2023 को साइंस जर्नल Cell.com में इजराइल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के कुछ बायोलॉजिस्ट्स की एक रिसर्च छपी। इसके मुताबिक, पौधे अगर तनाव या दिक्कत में हैं तो आवाज़ करते हैं। उन्होंने जैसी दिक्कत झेली है, उसी हिसाब से आवाज़ बदलती भी है। ये आवाज कई फ़ीट दूर से सुनी जा सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये मानी गई है वजह
रिसर्चर्स का कहना है कि पौधों से आने वाली ज्यादातर आवाजों की पीछे की सबसे संभावित वजह कैविटेशन है। कैविटेशन को ऐसे समझिए कि खाना और पानी जड़ से लेकर पौधे के बाकी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए वैस्कुलर सिस्टम यानी संवहन तंत्र होता है। इस वैस्कुलर सिस्टम में प्रेशर डिफरेंस के चलते बुलबुले बनते हैं। ये बुलबुले जब फूटते हैं तो हल्की तरंगें उठती हैं। इन्हीं तरंगों से पॉपकॉर्न के पकने जैसी आवाज होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जीवों से भी कम्यूनिकेट करते हैं पौधे
अंग्रेजी अखबार, न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तेल अवीव यूनिवर्सिटी में काम करने वाली बायोलॉजिस्ट लिलेक हेडेनी कहती हैं कि पौधे, दूसरे पौधों से ही नहीं, बल्कि दूसरे जीवों से भी कम्यूनिकेट करते हैं। ऐसा करते वक़्त उनसे एक केमिकल निकलता है। इस दौरान उनसे मक्खियों के भिनभिनाने जैसी आवाज आती है, लेकिन जब इन आवाजों पर रिसर्च करके इन्हें डिटेक्ट करने की बात आती है तो इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। पौधों की आवाजों से जुड़े इस सवाल को लेकर मैं परेशान थी। हेडेनी इसके बाद तेल अवीव में योसी योवेल से मिलीं। वो चमगादड़ों की आवाजों पर स्टडी कर रहे थे। फिर पौधों की आवाजों पर शोध करने का फैसला लिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तंबाकू और टमाटर पर की गई रिसर्च
रिसर्च, तंबाकू और टमाटर के पौधों पर हुई। इसका कारण यह था कि ये दोनों ही पौधे आसानी से उगते हैं और इनकी जेनेटिक्स को बेहतर तरीके से समझा जा चुका है। एक्सपेरिमेंट के लिए पौधों को लकड़ी के साउंडप्रूफ़ बक्सों में रखा गया। न इन बक्सों के अन्दर कोई आवाज जा सकती थी और न ही अन्दर से बाहर आ सकती थी। बक्सों में पौधों के अलावा कोई ऐसी चीज भी नहीं थी, जिससे किसी भी तरह की आवाज आती हो। बॉक्स में तीन तरह के पौधे रखे गये थे। एक वो पौधा था, जिसे कई दिनों से पानी नहीं दिया गया था। दूसरा वो पौधे था, जिसके तने काट दिए गए थे। तीसरी तरह का वो पौधे था जो सामान्य थे। यानि कि न उनको प्यासा रखा गया और न कोई अंग काटा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सामने आए चौंकाने वाले नतीजे
इसके बाद पौधों के तनों पर अल्ट्रासोनिक माइक्रोफ़ोन लगाए गए। ये अल्ट्रासोनिक माइक्रोफ़ोन, 20 से लेकर 250 किलोहर्ट्ज तक की फ्रीक्वेंसी की आवाजें रिकॉर्ड कर सकते थे। इंसान 20 किलोहर्ट्ज़ से ज्यादा फ्रीक्वेंसी की आवाज नहीं सुन सकते हैं। इसके बाद आए नतीजे चौंकाने वाले थे। एक तो पौधों की आवाज रिकॉर्ड हो गई और दूसरा, वो पौधे जिन्हें पानी नहीं दिया गया था, या जिनके तने काट दिए गए थे। उन्होंने ज्यादा आवाज की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
परेशानी वाले पौधों की ज्यादा निकली आवाज
हेडेनी कहती हैं कि हमने जो रिकॉर्डिंग्स कीं। उनसे साफ हुआ कि एक्सपेरिमेंट में पौधों ने 40 से 80 किलोहर्ट्ज़ तक की की फ्रीक्वेंसी की आवाजें पैदा कीं। जिन पौधों को कोई दिक्कत नहीं थी उन्होंने औसतन एक घंटे में एक से भी कम बार आवाज की, जबकि जिन पौधों को दिक्कत थी, उन्होंने हर एक घंटे में 12 बार तक आवाजें पैदा कीं। रिसर्चर्स ने ऐसी ही आवाजें उन पौधों से भी डिटेक्ट कीं, जिन्हें ग्रीनहाउस कंडीशंस में रखा गया था। ग्रीनहाउस कंडीशंस माने कांच या पॉलिशीट की दीवारों का ऐसा वातावरण, जहां ज्यादा गर्मी मेंटेन की जाती है। ख़ास तौर पर सर्दियों के मौसम में ग्रीनहाउस में पौधे उगाए जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अलग अलग दिक्कतों में अलग अलग आवाजें
एक और ख़ास बात, रिसर्चर्स ने पाया कि ये कि ये आवाजें रैंडम नहीं थी। टमाटर और तंबाकू के अलावा, गेहूं, मक्का, कैक्टस, अंगूर जैसे पौधों पर भी रिसर्च हुई। सभी पौधे अलग-अलग दिक्कतों के लिए अलग-अलग तरह की आवाज निकाल रहे थे। इस एनालिसिस में मशीन लर्निंग का इस्तेमाल किया गया था, जिससे 70 फीसद तक ये ठीक-ठीक पता चला कि कौन सी आवाज पौधे की किस दिक्कत की वजह से आ रही है। माने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके, रिसर्चर पौधों के तनाव के प्रकार और उसके स्तर को तय करने में सफल रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आवाजें देती हैं ये संकेत
हेडेनी आगे कहती हैं कि इस स्टडी से हमने एक बहुत पुराने वैज्ञानिक विवाद को सुलझाया है। हमने साबित किया है कि पौधे आवाजें निकालते हैं। हमारे निष्कर्षों से साफ़ है कि हमारे आस-पास की दुनिया पौधों की आवाजों से भरी हुई है। ये आवाजें ये जानकारी भी देती हैं कि पौधे को पानी की जरूरत है या वो घायल है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इंसान क्यों नहीं सुन पाता पौधों की आवाज
रिसर्च पेपर के मुताबिक पौधों से आने वाली ये आवाजें, पॉपकॉर्न की पॉपिंग के जैसी हैं। इन्हें 16 फीट की दूरी से रिकॉर्ड किया जा सकता है। इन्हें चूहे जैसे जानवर सुन भी सकते हैं, लेकिन ये हमारी हियरिंग रेंज से बाहर होती हैं। हमारी हियरिंग रेंज के दो आयाम हैं। एक आवाज की इंटेंसिटी और दूसरा फ्रीक्वेंसी। हमारा कान 20 हर्ट्ज़ से 20 किलोहर्ट्ज़ तक की आवाजें सुन सकता है। हालांकि उम्र के हिसाब से ये रेंज कुछ कम-ज्यादा भी हो सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जानवरों में अलग अलग सुनने की क्षमता
20 हर्ट्ज़ से नीचे की आवाजें, इन्फ्रासाउंड कही जाती हैं। कुछ कीट-पतंगे, चूहे और हाथी वगैरह ये आवाजें सुन सकते हैं। 20 किलोहर्ट्ज़ यानी 20 हजार हर्ट्ज़ से ज्यादा फ्रीक्वेंसी की साउंड वेव को अल्ट्रासाउंड कहा जाता है। कुत्ते और बिल्ली वगैरह इस फ्रीक्वेंसी की आवाजें सुन सकते हैं। वहीं चमगादड़ और डॉलफिन करीब 160 किलोहर्ट्ज़ तक की हाईफ्रीक्वेंसी की आवाजें सुन सकते है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक दूसरे की आवाज सुन सकते हैं पौधे
एक सवाल और बाकी है। क्या पौधे, दूसरे पौधों की या अपने आस-पास की आवाजें भी सुन सकते हैं? इसका जवाब ‘हां’ है। हेडेनी की टीम ने साल 2019 में भी एक रिसर्च की थी। इसके मुताबिक, जब परागण या पॉलिनेशन करने वाले कीट-पतंगे वगैरह की आवाजें फूलों तक पहुंचती है तो वो ज्यादा मात्रा में पराग बनाने लगते हैं। यानी पौधों द्वारा टू वे कम्यूनिकेशन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारतीय वैज्ञानिक बसु ने पहले ही कर ली थी खोज
एक भारतीय वैज्ञानिक थे जगदीश चंद्र बसु. उन्होंने साल 1901 में ही साबित कर दिया था कि पेड़ पौधों में जान होती है। उन्होंने पेड़-पौधों की हरकतों को रिकॉर्ड भी किया था, लेकिन ये तथ्य नया है कि पौधे अपने एहसासों को अपनी आवाज से जाहिर कर सकते हैं। वाकई प्लांट फिजियोलॉजी को और बेहतर समझने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।