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September 21, 2024

कुमाऊं का सबसे ऊंचा स्थान है पिथौरागढ़, जहां है मौत की गुफा, जानिए ऐसी रोचक जानकारी

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कुमाऊँ के सीमावर्ती क्षेत्र के सबसे ऊँचे स्थान होने का श्रेय पिथौरागढ़ को ही प्राप्त हुआ है। इसकी उच्च धवल श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। जोहार में मिलम ग्लेशियर भारत में ही नहीं, एशिया में सबसे लम्बा हिमनद है। ऐसे अनेकों ग्लेशियर यहाँ अपनी अनुपम छटा लिये हुए हैं। इनमें से नन्दाकोट (25530 फीट), पंचचूली (22667 फीट), मिलम ग्लेशियर के मस्तिष्क पर त्रिशूली (23600 फीट) भारत के मणि की भाँति चमकता रहता है। इसकी तलहटी में देवदार, बाँज, बुरांश, सुरई व चीड़ के वृक्षों की कतार सौन्दर्य पर चार चाँद लगाती है।


भौगोलिक क्षेत्र व प्रमुख नदियां
पिथौरागढ़ का भौगोलिक क्षेत्र 7090 वर्ग किलोमीटर है। वर्ष 2011 की जनगणना के हिसाब से यहां की जनसंख्या 483439 है। इस सीमावर्ती जिले से निकलने वाली नदियों में सरयू, गौरी, धौली गंगा, कूटी गंगा, मन्दाकिनी, रोहिणी व कोशी नदी कलकल रहती हुई मैदानी क्षेत्र को बहती हुई राष्ट्र की निधि बन जाती है। पिथौरागढ़, अल्मोड़ा से 122 किलोमीटर तथा टनकपुर से 150 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यहाँ गोरखों द्वारा निर्मित एक किला है जिसे सन 1789 में बनाया गया था। अधिकतर सरकारी कार्यालय इसी किले में स्थित है।


पाताल भुवनेश्वर गुफा में देवी देवियों की मूर्तियां
पिथौरागढ़ मुख्यालय से 91 किलोमीटर तथा गंगोलीहाट से उत्तर दिशा में 14 किलोमीटर की दूरी पर पाताल भुवनेश्वर स्थित है। यह एक लम्बी गुफा है, जिसके अन्दर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ चट्टानों पर निर्मित हैं। यहीं पाताल गंगा के अवर्णनीय दर्शन होते हैं, यहाँ शिवरात्रि को विशाल मेले का आयोजन होता है।
गंगोलीहाट
पिथौरागढ़ से 78 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम की ओर ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है। यहां प्राचीन कालिका मंदिर दर्शनीय है। कालिका के जाह्नवी नौलों की विशेष महत्ता है। देवदार के घने वृक्षों के मध्य मां चण्डिका के मेले में समस्त पर्वतवासी भाग लेना पुण्य समझते हैं। यह वह स्थान है, जहाँ पर दण्डिका देवी ने चंड-मुंड का संहार किया था।
चण्डाक यहां है कुष्ठ रोगियों का आश्रम
यहाँ का ब्रिटिश कालीन कुष्ठ आश्रम रोगियों को रूग्ण अवस्था से छुटकारा दिलाने में सर्वोपरि है। सन् 1874 में अंग्रेज बेजबली ने कुष्ठरोग के निवारण के लिए एक समिति ‘द मिशन टू लैपर्स’ गठित की तथा 6500 फीट की ऊंचाई पर स्थित स्थान पर समाज से तिरस्कृत लोगों को पुनः समाज से जोड़ने के प्रयास में यहाँ आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम का फैलाव 92 एकड़ भूमि में है। यहाँ रोगियों को स्वावलम्बी बनाने का अवसर विभिन्न रोजगार माध्यमों से दिया जाता है।


नारायण आश्रम
9000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह आश्रम हिमालय की श्रृखंलाओं को समीप से देखने का सर्वोत्तम स्थान है। यह आश्रम सन् 1936 में नारायण स्वामी ने स्थापित किया था। यहाँ आध्यात्मिक प्रवचनों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक प्रबन्धन पर भी शैक्षिक कार्य चलता है।
झल्तोला
यह आठ हजार फीट की ऊँचाई पर बाँज-बुरांश के वृक्षों से लदी घाटी व देवदार-चोड़ के घने वृक्षों के मध्य चाय, सेब, नाशपाती, खुमानी आदि बाग-बगीचों से भरपूर स्थान है। इसी धरती में भारत के अग्रणी सर्वेक्षणकर्ता नैनसिंह का पैतृक गाँव है।


बेनीनाग
पिथौरागढ़ से 102 किलोमीटर तथा चौकोरी से दस किलोमीटर गंगोलीहाट की दिशा में, 7000 फीट की ऊँचाई पर यह स्थान चाय बगानों से भरपूर है। यहाँ की चाय विदेशों में भी लोकप्रिय है। वहीं पर स्थित 150 फीट ऊँचा जल-प्रताप अपना विशेष महत्त्व रखता है।
झूलाघाट
नेपाल व पिथौरागढ़ की सीमा पर काली नदी के किनारे का यह स्थान भारत व नेपाल का बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र है।


उत्तराखंड का स्विटजरलैंड है मिलम
लगभग 11000 फीट की ऊँचाई पर स्थित गाँव, उत्तराखण्ड का स्विटजरलैंड है। कैलाश-मनासरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों का यह व्यापारिक केन्द्र था। यहां से अन्न, सुहागा व नमक का व्यापार होता था। उस समय तिब्बत के भारतीय व्यापारियों का मिलन केन्द्र होने के कारण इसका नाम मिलम पड़ा। यह स्थान प्रसिद्ध सर्वेक्षणकर्ता किशनसिंह की जन्मभूमि है, जिन्होंने अपने अथाह परिश्रम से तिब्बत की चार यात्रायें कर भारतीय सर्वे को तिब्बत के बारे में भौगोलिक जानकारी दी।
मुनस्यारी
पिथौरागढ़ से 127 किलोमीटर तथा जौलजीवी से 60 किलोमीटर के अन्तराल पर सात हजार फीट ऊँची चोटी पर स्थित यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है। यहाँ पर फलों के उद्यान तथा फलोत्पादन का प्रशिक्षण केन्द्र भी है। इसके सामने पंचचूली पर्वत के भव्य दर्शन व उत्तर दिशा की ओर 11000 फीट की ऊँचाई पर चार सौ फीट ऊँचे शिवलिंग के दर्शन होते हैं। यहाँ पर सर्पों का जमघट नागाधिराज शिवशंकर की वास्तविकता को दर्शाता है। सन् 1965 में चौथे एवरेस्ट दल के सदस्य पद्मश्री हरिश्चन्द्र सिंह रावत का जन्म मुनस्यारी के सिरमोली गांव में ही हुआ था। था। पर्वतारोहण का अंकुर इसी पुण्य भूमि के प्रताप से हरिश्चन्द्र सिंह रावत के हृदय में जाग्रत हुआ था।


भुवानी
यहाँ पर स्थित महिला आश्रम की स्थापना प्रसिद्ध समाजसेवी शेरसिंह ने की थी। इस आश्रम में महिलाओं के उत्थान व स्वावलम्बन की दिशा में में कार्य किया जाता है। यहाँ पर गन्ने की पैदावार बहुतायत में होती है, इसलिए गुड़ उत्पादन को अधिक प्रोत्साहन दिया जाता है।
सोवला जहां है मौत की गुफा
इस स्थान में स्थित गुफा को मौत की गुफा के नाम से जाना जाता है। इस गुफा में पशुओं की हड्डियाँ पड़ी मिलती है। कहा जाता है कि इस गुफा से कार्बन डाई आक्साइड गैस के लगातार रिसाव से पशु चारे के लोभ में पहुँचकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
जौलजीवी
गौरी और काली नदी के संगम पर स्थित यह स्थान पिथौरागढ़ से 73 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पर जिले का मुख्य व्यापारिक मेला भी लगता है, जिसमें व्यापारी भोटिये, शाल, थुमले, गलीचे और कम्बलों का व्यापार करने आते हैं।
चण्डक हिल
6500 फीट की ऊँचाई पर तथा पिथौरागढ़ मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर यह पर्वत स्थित है। इस पर्वत पर शिव का मंदिर है। यहाँ सितम्बर माह में मेले का आयोजन होता है। इस पर्वत से हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत श्रेणियाँ तो दिखती ही हैं। नेपाल का माउन्टअप्पी भी दृष्टिगोचर होता है।
सोर घाटीः जहां थे नौ राजाओं के किले
पूर्व में काली, दक्षिण में सरयू, पश्चिम में रामगंगा, उत्तर में अस्कोट, कनालीछीना तथा सीरा से लगी हुई इस घाटी की सीमायें हैं। सैणी सोर व दो नाम से यह परगना बसा है। जहाँ मैदानी क्षेत्र है, वह सैणी सोर कहलाता है। जहाँ पहाड़ी इलाका है, वह सोर कहलाता है। यहाँ धज, कवालेख, उदयपुर, अर्जुनेश्वर, छीनापानी, असुरेश्वर, चण्डाक, थलकेदार व बसारूड़ी आदि ऊँचे पर्वत है।
यहाँ एक स्थान पर लाल मिट्टी निकलती है, जो गुलाल की तरह होती है। यहाँ कागज भी बनाया जाता है। कागज बनाने के लिए ‘बड़वा’ वृक्ष प्रयोग में लाया जाता है। इस वृक्ष के पत्ते लम्बे सफेद तथा फूल व फल पकने पर लाल रंग का हो जाता है। इस पौधे की जड़ से पेट साफ करने की दवा भी बनती है। सोर, प्राचीन काल में बहुत दिनों तक डोटी राज्य के अधीन रहा। इस घाटी में पहले नौ राजा राज्य करते थे। उन राजाओं के नौ किले इस प्रकार थे-
-उचाकोट-पंगटूव हुड़ती गाँव के बीच।
-भाटकोट-पिथौरागढ़ से पूर्व चैसर व कुमौड़ गाँव के उत्तरी दिशा में लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर।
-बैलरकोट-मौजे धरकोट के निकट।
-उदयपुर कोट-बाजार से पश्चिम को पयदेव व मजेड़ा गाँव के ऊपर।
-डुंगराकोट-ग्राम धारी व पामै के पास।
-सहजकोट-पिथौरागढ़ बाजार की उत्तरी दिशा में गाँव पंडाव उग पर्वत के ऊपर।
-बमुवाकोट-बाजार के दक्षिणी ओर पहाड़ की चोटी पर।
-देवादार कोट-वलदिया पट्टी में सिमलकोट गाँव के निकट।
दुनीकोट-गाँव दुनी व कासनी के नजदीक।
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करेंः जानिए उत्तराखंड में कुमाऊं का इतिहास, आजादी के आंदोलन में यहां के लोगों का योगदान


लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “कुमाऊं का सबसे ऊंचा स्थान है पिथौरागढ़, जहां है मौत की गुफा, जानिए ऐसी रोचक जानकारी

  1. उत्तराखंड के पर्यटक स्थलों के बारे में काफी रोचक जानकारी है। पढ़कर ही ऐसे रमणीक स्थानों को देखने की इच्छा जाग्रत हो जाती है। ऐसे पर्यटन स्थलों का परिचय करने के लिए लोकसाक्षय को साधुवाद।

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