Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

August 6, 2025

हिमालयन हॉस्पिटल में चिकित्सकों ने किया बेमिसाल काम, 1100 ग्राम के नवजात का आपरेशन कर दिया जीवनदान

देहरादून के डोईवाला में हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट बाल रोग सर्जरी विभाग की टीम ने नवजात का जटिल ऑपरेशन कर उसे नया जीवन दिया। नवजात की आहार नली अविकसित होने के साथ सांस की नली से भी जुड़ी हुई थी, जिस कारण नवजात के जीवन पर संकट बना हुआ था।

देहरादून के डोईवाला में हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट बाल रोग सर्जरी विभाग की टीम ने नवजात का जटिल ऑपरेशन कर उसे नया जीवन दिया। नवजात की आहार नली अविकसित होने के साथ सांस की नली से भी जुड़ी हुई थी, जिस कारण नवजात के जीवन पर संकट बना हुआ था। हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट में वरिष्ठ बाल रोग सर्जन डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि सुजाता (बदला हुआ नाम) का प्री-मौच्योर बेटा हुआ। नवजात का वजन मात्र 1100 ग्राम ही था। जब उसे पहली बार दूध पिलाया गया तो वह उसके पेट में न जा कर बाहर ही आ गया। स्थानीय डॉक्टरों की सलाह पर परिजन नवजात को हिमालयन हॉस्पिटल लेकर आए।
डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि नवजात की प्रारंभिक जांचों के बाद पाया गया कि उसकी आहार नली अविकसित होने के साथ सांस लेने की नली से भी जुड़ी हुई थी। इस बीमारी को इसोफेजिअल अट्रेजिया (विद ट्रेकियो-इसोफजिअल फिस्चुला) कहते हैं। इसका एकमात्र इलाज ऑपरेशन ही है। डॉ.संतोष ने बताया कि हालांकि नवजात प्री-मैच्योर होने व वज़न अत्यंत कम होने की वजह से ऑपरेशन बेहद जटिल था। परिजनों की सहमति के बाद डॉ. संतोष कुमार व डॉ. शाल्विका, एनेस्थीसिया से डॉ. राजीव भंडारी व डॉ. दीप्ति और नर्सिंग ऑफिसर आशा नेगी की टीम ने इस जटिल ऑपरेशन को अंजाम दिया। ऑपरेशन सफल रहा और करीब 10 दिनों के बाद सुजाता अब खुश थी क्योंकि अब उसका बेटा दूसरे नवजात बच्चों की भांति दूध पी पा रहा था। स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जॉलीग्रांट के कुलपति डॉ.विजय धस्माना व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.एसएल जेठानी ने सर्जरी में शामिल पूरी टीम को बधाई दी है।

एनआईसीयू टीम का योगदान महत्वपूर्ण
हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट के डॉ.संतोष कुमार ने बताया कि ऑपरेशन के बाद का समय भी चुनौतियों से भरा रहा। नवजात को वेंटीलेटर पर रखकर उसे नसों के माध्यम से पोषण देना था, जब तक कि वो मुंह से दूध पीने के लायक न हो जाए। ये ज़िम्मेदारी नवजात रोग विशेषज्ञ डॉ. गिरीश गुप्ता के नेतृत्व में डॉ. राकेश, डॉ.सनोबर व एनआईसीयू की टीम ने पूरी की।
क्या है इसोफेजिअल एट्रेजिया ?
ये एक जन्मजात संरचनात्मक दोष है, जिसमें भोजन की नली का पूर्ण व समुचित विकास नहीं होता है। ज्यादातर मामलों में ये अविकसित नली सांस लेने की नली से भी जुडी हुई होती है। इसे ट्रेकियो-इसोफजिअल फिस्चुला कहते हैं। परिणामस्वरूप बच्चा दूध नहीं पी पाता है। जबरदस्ती मुंह में दूध डालते रहने से ये दूध सांस की नली में चला जाता है जिससे न सिर्फ निमोनिया हो जाता है बल्कि ये जानलेवा भी हो सकता है। इसका एकमात्र विकल्प जल्द से जल्द ऑपरेशन ही है। ऑपरेशन में भोजन की नली को सांस की नली से अलग करके व् उसके सिरों को जोड़ कर सामान्य नली बने जाती है। बच्चे का वज़न 2.5 किलोग्राम या अधिक होने पर इस ऑपरेशन की सफलता दर 95-100 फीसदी है परन्तु वज़न कम होने की स्थिति में ये दर काफी कम हो सकती है। प्री-मैच्योर बच्चों में ये खतरा और भी बढ़ जाता है क्योंकि उन्हें आमतौर पर वेंटिलेटर पर रखना ही पड़ता है। हालांकि ऑपरेशन के पश्चात ये बच्चे अन्य किसी भी बच्चे की तरह सामान्य जीवन जीते हैं।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *