कोरोना को लेकर पहले खूब किया हिंदू-मुस्लिम, यहां तो परिजनों ने नहीं लगाया हाथ और मुस्लिमों ने दी चिता को मुखाग्नि

कोरोनाकाल के शुरूवाती दिनों में राजनीतिक दलों और जहर फैलाने वाले मीडिया ने खूब हिंदू-मुस्लिम करके लोगों को बांटने का काम किया। जमातियों के नाम पर तो एक बार काफी लोग ऐसे भ्रामक प्रचार में आ भी गए थे। फिर स्थिति सामान्य होने में देर नहीं लगी। इस कोरोनाकाल में हिंदू समाज के लोग सेवा में जहां बढ़चढ़कर सहयोग कर रहे हैं, वहीं मुस्लिम समाज के लोग भी पीछे नहीं है। क्योंकि सभी को पता है कि जिस परिस्थितियों से देश गुजर रहा है, इसमें लड़ने के लिए एकजुटता ही जरूरी है। कोरोना किसी की जात और धर्म पूछकर हमला नहीं करेगा। वो हमारी ही लापरवाही से संक्रमित करेगा।
उत्तराखंड के नैनीताल जिले में हल्द्वानी शहर की ही बात करें तो यहां हिंदू और मुस्लिमों की मिलीजुली आबादी है। यहां रविवार दोपहर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिशाल देखने को मिली। बहेड़ी निवासी एक व्यक्ति की सुशीला तिवारी में कोरोना से मौत हो गई। इस पर बनभूलपुरा के लाइन नंबर आठ निवासी मुस्लिम समाज के पांच लोग मदद को आगे आए। मुस्लिम समाज के एक युवक द्वारा चिता को मुखाग्नि दी गई। वहीं, मृतक के छोटे भाई ने भी लिखित में दिया था कि शव इन्हीं लोगों के सुपुर्द किया जाए।
बहेड़ी बरेली के मंगलपुर निवासी 40 वर्षीय पंकज गंगवार दस दिन पहले कोरोना की चपेट में आ गए थे। जिसके बाद उन्हें उपचार के लिए हल्द्वानी लाया गया। शहर में पहचान नहीं होने पर स्वजनों द्वारा लाइन नंबर आठ निवासी रइसुल हुसैन को फोन कर मदद करने को कहा। रइसुल ने एसटीएच प्रशासन से वार्ता कर पंकज को कोविड वार्ड में भर्ती करा दिया। जहां उसने दम तोड़ दिया।
इसके बाद मृतक के छोटे भाई गजेंद्र ने अंत्येष्टि में सहयोग करने के लिए दोबारा सहयोग मांगा। उसी दिन दोपहर में रइसुल की मौसी की बेटी का इंतकाल होने के कारण शाम तक का वक्त कब्रिस्तान में लग गया। अंधेरे होने की वजह से अगले दिन अंत्येष्टि का निर्णय लिया गया। इस वजह से गजेंद्र घर चला गया। वहां परिवार के अन्य सदस्य की तबीयत खराब होने पर उसने रइसुल को फोन कर कहा कि मौजूदा स्थिति में वो लोग आने में असमर्थ है। इसलिए अंतिम संस्कार भी वे ही करा दें। इस संबंध में मृतक के छोटे भाई गजेंद्र ने मेडिकल चौकी को लिखित में दिया कि पूर्व परिचय नहीं होने के बावजूद रइसुल हसन ने उपचार के दौरान काफी मदद की गई। इसलिए मैं चाहता हूं कि अंत्येष्टि के लिए भी शव इनके सुपुर्द कर दिया जाए।
इस पर रइसुल ने साथियों संग बात की और लाइन नंबर आठ निवासी मोहम्मद शादाब, मो. मौसीन, इकरार हुसैन व मो. उस्मान भी रविवार दोपहर मदद को आगे आए। इसके बाद राजपुरा स्थित मुक्तिधाम घाट पर पंकज का अंतिम संस्कार किया गया। पीपीइ किट पहन इकरार हुसैन ने चिता को मुखाग्नि दी। लकड़ी व अन्य चीजों की व्यवस्था मुक्तिधाम समिति के मंत्री रामबाबू जायसवाल व दशांक्ष सेवा समिति द्वारा की गई।
परिवार के सदस्यों से नहीं लूंगा पैसा
मुक्तिधाम में पंकज के शव को मुखाग्नि देने वाले इकरार तहसील परिसर में मृत्यु प्रमाण पत्र आदि बनाने का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। संक्रमित की मौत के बाद परिवार के सदस्यों से डेथ सर्टिफिकेट बनाने के कोई पैसे नहीं लिए जाएंगे।
यह सच्ची मानवता है, नमन मुस्लिम भाईयों को